पुलिस को लगा मेहरबानी का रोग
रामानुज, बागपत : नगर से कुछ दूर दिल्ली-यमुनोत्री हाईवे स्थित नशा मुक्ति केंद्र में रक्षाबंधन के दिन रविवार को खुली रोशनी में जो कुछ हुआ, वह किसी से छिपा नहीं है। करीब दो दर्जन लोगों के सामने जिस बेरहमी और यातना के साथ नशे के रोगी फिरोज (20) को मौत के घाट उतारा गया,वह किसी सभ्य समाज और चिकित्सा पेशा का कार्य नहीं हो सकता है। ऐसे रोगियों को जहां सामान्य रोगी से भी अधिक देखभाल और संयम से इलाज की आवश्यकता होती है, वहीं उसके साथ पेशेवर मुल्जिम जैसा सुलूक किया गया। इसके बावजूद कोतवाली पुलिस ने नशा मुक्ति केंद्र संचालक-कर्मियों पर अपनी मेहरबानी बरसा दी। उसे न तो रोगी के शरीर का हाल दिखा, न ही उसे प्रत्यक्षदर्शियों की जुबानी सुनाई दी, वह तो बस अपनी ही कार्यशैली से परिजनों और गांव के लोगों को नया आईना दिखाने में मशगूल थी।
इसे पुलिस का दिवालियापन कहें या नैतिक मूल्यों का पतन। या फिर यह कानून के ढांचे में लगा हुआ कोई लाइलाज रोग है,जो अब ठीक ही नहीं हो सकता है। यही कारण है कि वह घटना और मामलों में अपने तरीके से प्राथमिकी दर्ज करती है और फिर उसी तरह से काम करती है। उसके लिए घटनास्थल पर मिले साक्ष्य, प्रत्यक्षदर्शी और शव की हालत और पोस्टमार्टम रिपोर्ट से कोई लेना-देना नहीं है। भले ही वह घटना की कहानी को चीख-चीख कर बता रहे हों। उसे तो बस अपनी ही 'शैली', तहरीर और अपने 'कानून' से काम करना है। हां, वह उस केस में पोस्टमार्टम रिपोर्ट के आधार पर जरूर कार्रवाई करती है,जो साठगांठ कर बनवायी जाती है,जिनका मौका-ए-वारदात से कोई लेना देना नहीं होता है। खैर यह तो पुलिस और उसकी कार्रवाई का पहलू रहा, लेकिन प्रशासनिक या स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी भी ऐसे केंद्रों की शायद ही कभी जांच करने जाते हों।
उन्हें यह भी नहीं मालूम होगा, ऐसे केंद्रों में नशे से संबंधित रोगियों का इलाज करने के केंद्र के पास क्या मुकम्मल तरीके हैं या नहीं। प्रशिक्षित कर्मी, चिकित्सक हैं या नहीं।
बड़ौत तहसील के बिनौली थानाक्षेत्र के जौहड़ी गांव निवासी फिरोज पुत्र हनीफ की नशामुक्ति केंद्र पर नृशंस हत्या के बाद परिजनों और गांव के लोगों ने सोमवार को डीएम कार्यालय में डेरा डाला और नवागत डीएम धनलक्ष्मी के. से सही तरीके से कार्रवाई की फरियाद की। उन्होंने तुरंत एसपी जेके शाही से बात कर निष्पक्ष जांच कर कार्रवाई तथा पोस्टमार्टम की वीडियोग्राफी कराने का भी निर्देश दिया। बहरहाल, इन सब निर्देशों और साक्ष्यों के बावजूद कोतवाली पुलिस की नशा मुक्ति केंद्र संचालक और कर्मियों पर मेहरबानी क्यों हो रही है। यह परिजनों और लोगों की समझ के परे है। बर्बर तरीके से नशे के रोगी फिरोज की हत्या को कोतवाली पुलिस ने 304 यानी गैरइरादतन हत्या में क्यों दर्ज किया?