नीलकंठ के दर्शन से मिट गए दिलों पर लगे जख्म
बागपत : पाकिस्तान में तो अपने इष्टदेव के पूजन पर भी पाबंदी थी मगर एक अर्से बाद अपने धर्म के लोगों के साथ जाकर परम धाम के दर्शन हुए तो दिलों पर लगे जख्म भी भर गए। नीलकंठ के दर्शन कर इतना संतोष मिला कि मानो जन्म-जन्मांतर की इच्छा पूर्ण हुई हो गई। यह उद्गार पाकिस्तान से भारत पहुंचे हिंदू शरणार्थी परिवारों के सदस्यों के हैं।
बुधवार को बरनावा-दाहा मार्ग पर पलड़ा गांव से 19 हिंदू शरणार्थियों का जत्था गुजरा तो हर किसी ने उनका कुशलक्षेम पूछा। लेकिन जब इन परिवारों ने पाकिस्तान में हुए जुल्मों की दास्ता सुनाई तो हर किसी की आंखें डबडबा गई। शरणार्थी परिवारों के मुखिया सीताराम, रूपचंद, दिलीप कुमार ने बताया कि 145 लोगों का समूह 20 दिन पूर्व पाकिस्तान से भारत पहुंचा। यहां नई दिल्ली के बिजवासन में कस्टम आफिसर नहार सिंह ने इन्हें शरण दी और उनके रहने व खाने का सारा बंदोबस्त नहार सिंह ही उठा रहे हैं। कांवड़ लाने की इच्छा हुई तो नहार सिंह के पुत्र अशोक कुमार के साथ परिवार के 19 सदस्य हरिद्वार पहुंच गए और वहां नीलकंठ बाबा के दर्शन किए।
उन्होंने बताया कि पाकिस्तान में हिंदुओं को देवी-देवताओं की पूजा नहीं करने दी जाती। यदि कोई मूर्ति बनाकर उसका पूजन करना चाहता है तो उसे जबरन खंड़ित कर दिया जाता है। हिंदुओं को होली, दिवाली जैसे पर्व भी घरों के अंदर छिपकर मनाने पड़ते हैं। हिंदू परिवारों की गायों को भी काट दिया जाता। स्कूल में कलमा पढ़वाया जाता है। शरणार्थियों में राजकुमार, आकाश, दीवान, किशन, दीपा आर्य, ओमप्रकाश, लक्ष्मी, सुनारी, श्रीराम, श्रवण ज्ञानचंद आदि शामिल थे।