..जो गिरने वाला था, वो घर मुझे बनाना था
बदायूं : करीब साढ़े छह दशक से काव्य मंचों के बादशाह पद्मश्री गोपाल दास नीरज व सोम ठाकुर व शिवओम अंबर
बदायूं : करीब साढ़े छह दशक से काव्य मंचों के बादशाह पद्मश्री गोपाल दास नीरज व सोम ठाकुर व शिवओम अंबर जैसी नामचीन हस्तियां मंच पर हों तो वह शाम स्वत: यादगार बन जाती है। इसका तर्जुबा शुक्रवार को हुआ यूनियन क्लब के ऐतिहासिक परिसर में, जहां स्मृति वंदन के तीन दिनी महोत्सव की आखिरी शाम थी।
स्मृति वंदन महोत्सव के आखिरी दिन मुख्य अतिथि सांसद धर्मेन्द्र यादव ने मां शारदे के चित्र के समक्ष दीप प्रज्ज्वलित कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया। इसके पश्चात जिले के वरिष्ठ साहित्यकारों का सांसद ने सम्मान किया। सरस्वती वंदना के बाद तो कवियों ने साहित्य धारा की झड़ी लगा दी। पद्मश्री गोपाल दास नीरज ने जब -मेरे नसीब में ऐसा भी वक्त आना था, जो गिरने वाला था वो घर मुझे बनाना था..सुनाकर खूब तालियां लूटीं। उन्होंने सूफियाना दोहों की श्रंखला आगे बढ़ाते हुए पढ़ा- खुदी भी नहीं, बेखुदी भी नहीं, चले आइए अब कोई भी नहीं..के सहारे जीवन के सत्य को सामने रख दिया। सभी दुखी हैं यहां, अपने-अपने सुख के लिए, मेरे लिए तो कोई भी रोने वाला न था..सुनाकर हकीकत का अहसास कराया। साहित्य की गरिमा का बखान करते हुए उन्होंने कहा- आत्मा के सौंदर्य का शब्द रूप है काव्य, मानव बनना भाग्य है, कवि बनना सौभाग्य..तो देर तालियां बजती रहीं। उप्र. हिंदी संस्थान के पूर्व उपाध्यक्ष सोम ठाकुर ने -सागर चरन पखारे गंगा शीश चढ़ाये नीर, मेरे भारत की माटी है चंदन और अबीर, सौ-सौ नमन करुं मैं भइया सौ सौ नमन करुं..सुनाकर देशभक्ति का जज्बा जगा दिया। उन्होंने करते हैं तन मन से वंदन अभिलाषा का अभिनंदन, अपनी संस्कृति का अभिनंदन अपनी भाषा का वंदन.सुनाकर हिंदी प्रेमियों को झुमा दिया। उन्होंने आगे पढ़ा-यूं दीये पे हरेक रात भारी रही, रोशनी के लिए जंग जारी रही। कवि सम्मेलन में स्थानीय वरिष्ठ कवि टिल्लन वर्मा के अलावा धर्मेश अविचल, रचना तिवारी, अज्म शाकिरी, शरद लंकेश, अजय अटल, राम नरेश अग्निवंशी, खुशबू रामपुरी, लटूरी लट्ठ ने भी खूब समां बांधा। स्मृति वंदन के संरक्षक प्यारे लाल शिशु, सचिव भानु प्रकाश भानु, भूराज सिंह राजलायर, डा. अरविंद धवल, सुशील चौधरी, स्वाले चौधरी, सुहेल चौधरी, बलवीर सिंह सहित संस्था के अन्य लोगों ने अतिथियों का सम्मान किया।