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अमृत की बूंद नहीं धार, महिमा अपरम्पार

बदायूं : बेशक यहां अमृत की वह बूंद नहीं छलकी थी, जिसके कारण प्रयाग, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में कु

By Edited By: Published: Fri, 31 Oct 2014 12:21 AM (IST)Updated: Fri, 31 Oct 2014 12:21 AM (IST)
अमृत की बूंद नहीं धार, महिमा अपरम्पार

बदायूं : बेशक यहां अमृत की वह बूंद नहीं छलकी थी, जिसके कारण प्रयाग, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में कुंभ होता है। इसके बावजूद गंगा के ककोड़ा तट पर ऐसा कुछ जरूर है, जिससे आस्था की डोर में बंधकर लाखों लाख श्रद्धालु कटरी की ओर खिंचे चले आते हैं। इस सवाल पर ककोड़ा के फक्कड़ संत नन्हें दास उलटा सवाल दाग देते हैं कि क्या गंगा मैया का जल अमृत नहीं है। वे शास्त्रों में वर्णित गंगा की महिमा के साथ अकबर-बीरबल संवाद का वह कथानक भी सुनाते हैं, जिसमें वीरबल ने कहा था कि जहांपनाह आपने तो जल पूछा था गंगा में तो अमृत बहता है।

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ककोड़ा मेले को मिनी कुंभ जरूर कहा जाता है, लेकिन हकीकत यह है कि यहां कुंभ की भांति तमाम सुविधाएं नहीं होती हैं। रेती पर पतेल डालकर बनाई जाने वाली सड़कें बिल्कुल अलग तरीके का अहसास कराती हैं। इस तंबुओं के शहर में टेंट भी बहुत सादगीपूर्ण होते हैं और उससे भी बड़ी बात है कि सबमें एकरूपता। अत्याधुनिक सुविधाओं के वशीभूत लोग भी यहां भौतिक साधनों से दूरी बनाकर आनंद की तलाश ही करते बल्कि हासिल भी करते हैं। तभी तो पूरे पश्चिम उत्तर प्रदेश में करीब ढाई सौ वर्ष पुराने मेला ककोड़ा मिनी कुंभ कहा जाता है। मेले के रास्ते में अभी भी बैलगाड़ियों की लंबी कतारें दिखाई पड़ती हैं तो तमाम कृषक परिवार अपने पशुओं को भी साथ ले जाकर गंगा तटवास कराते हैं। मेले के सामाजिक संदर्भ तो और भी चौंकाने वाले हैं। मेले में एक-दूसरे की राउटियों में जाकर मिलने की बड़ी ही समृद्ध परंपरा है। अतिथि का महिलाएं बाकायदा रोली चंदन लगाकर स्वागत करती हैं। फिर उनकी सेवा सुश्रुसा के बाद विदाई के वक्त दक्षिणा भी दी जाती है। इलाके वार बसने वाले मेले में लोग अपनी रिश्तेदारियों में भी खूब आते-जाते हैं। लड़के-लड़कियों की शादियां भी यहां तय होती हैं। गंगा के पाट बदलने से मेला भले ही अब ककोड़ा देवी मंदिर से कई किमी दूर पहुंच गया, लेकिन बड़ी संख्या में श्रद्धालु मंदिर दर्शन करने जरूर जाते हैं। बुधवार को उदघाटन के अवसर पर जिलाधिकारी ने घाट पर जल का थाह जानने की इच्छा जताई तो एक अधेड़ सामने आ गया। उसने हेड मल्लाह मो. साकिर की पंट्टी पहन रखी थी। साकिर ने बताया कि वह तो पीढि़यों से मां गंगा के सेवक हैं। साकिर ही नहीं यहां अधिकांश मल्लाह (नौका खेने वाले) व गोताखोर मुस्लिम ही हैं। मां गंगा से उनकी जीविका जुड़ी है। मेले में भी हिंदुओं के साथ ही बड़ी संख्या में मुसलमान भी आते हैं। वहीं मौजूद स्नातक संघ के अध्यक्ष सलमान सिद्दीकी एडवोकेट स्पष्ट कहते हैं कि गंगाजी के प्रति सबको लगाव है। तभी तो नवाब अब्दुल्ला ने गंगा तीरे यह मेला शुरू किया। वे कहते हैं कि मैं खुद निर्मल गंगा अभियान में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेता हूं। इस प्रकार यह मेला वाकई सांप्रदायिक सौहार्द की भी मिसाल है।

आकार लेने लगीं तैयारियां

ककोड़ा मेले की तैयारियां अब आकार लेने लगीं। एक ओर जहां घाट बनाने का काम तेजी से चल रहा है ताकि देवोत्थानी एकादशी (3 नवंबर) तक सब कुछ दुरुस्त हो जाए, वहीं मेला कोतवाली में काम-काज शुरू हो गया। झूला व दुकानों के पहुंचने का क्रम शुरू हो गया है। पतेल डालकर रास्ते बनाने के बाद अब सिरकियों की दीवारे भी बनने लगीं। अलग-अलग इलाकों में तंबुओं को खड़ा करने का काम भी शुरू हो गया।


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