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'मैं अकेला ही चला था कारवां बनता गया'

प्रसून शुक्ल, बदायूं मैं तो अकेला ही चला था जानिब ए मंजिल मगर लोग जुड़ते गए कारवां बनता गया। दैनिक

By Edited By: Published: Sun, 01 May 2016 11:22 AM (IST)Updated: Sun, 01 May 2016 11:22 AM (IST)
'मैं अकेला ही चला था कारवां बनता गया'

प्रसून शुक्ल, बदायूं

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मैं तो अकेला ही चला था जानिब ए मंजिल मगर लोग जुड़ते गए कारवां बनता गया। दैनिक जागरण की एक छोटी से मुहिम को जब शुरू किया गया तो इसे लोगों में चर्चा में तो लिया पर जब तब इस मुहिम पर कटाक्ष भी हुए। पर आज जब उप्र सरकार के मुखिया के अनुज सांसद बदायूं धर्मेंद्र यादव ने इस कार्यक्रम में शिरकत की और इसके स्वरुप को देखा तो उन्हे यह समझने में देर न लगी कि यह छोटे कैनवास पर उतर रहा सूबे का सबसे मजबूत डिजास्टर मैनेजमेंट का वो सिस्टम हैं जो आने वाले दिनों में धमक देगा। इसका असर यह हुआ कि मुख्यमंत्री अखिलेश यादव भी आधुनिक विश्वकर्मा के लिए बरेली आने वाले हैं।

राज मस्त्रियों के जो आज जज्बात थे उनसे रु ब रु होने के बाद सांसद धर्मेंद्र यादव ने भी इस बात को महसूस किया कि इंसान ही नहीं इंसानियत को बचाना है तो इसके लिए कुछ खास पहल की गई है। इस आयोजन को न केवल सराहा गया बल्कि उन्होनें खुद कहा कि इसे सरकार अपने एजेंडे में लेगी और बि¨ल्डग ही नहीं अन्य भवनों को सहेजा जाएगा। एक कैनवास पर दैनिक जागरण ने प्राकृतिक आपदा भूकंप से लड़ने के लिए तैयार किए समाजिक सरोकार के सेनानियों को जिस रूप में पेश किया उसे देख कर बदायूं के गणमान्यों के मन के भीतर भी यह बात पैदा हुई कि बेहद आहिस्ता जो काम दैनिक जागरण ने किया है वह वाकई काबिल ए तारीफ है और यह एक कारवां बन चुका है। बदायूं से इलाहाबाद तक इस प्रोजेक्ट की गूंज रही है और दैनिक जागरण की इस मुहिम को किसी के परिचय की जरूरत नहीं है।

जब मां ने दिया राजमिस्त्री मनीष को सहारा

जितने जतन से इस ट्रे¨नग में मनीष कुमार ने हिस्सा लिया। उतने ही प्रयासों के बाद उसकी ट्रे¨नग पूरी हुई पर जब प्रमाण पत्र लेने की बारी आई तो उसके साथ हादसा हो गया। उसके पैर में इतनी चोट आई कि वह यहां आने के काबिल नहीं था। पर उसने हिम्मत नहीं हारी। एक तो रोजी और रोटी की खातिर उसकी प्रतिदिन दिहाडी का जरिया ही ट्रट गया ऊपर से जब जतन कर ट्रे¨नग की तो उसका तमगा लेने के लिए भी उसे नहीं जा पाने का मलाल हो रहा था। तब मनीष की मा जयंती देवी ने उसका साथ दिया। मां के कंधे का सहारा लेकर मनीश जिला पंचायत सभागार पहुंचा और यहां आकर उसने डंडे के सहारे खड़े होकर सांसद से अपनी काबिलियत का तमगा हासिल किया। लोग मनीष के जज्बे को देखकर दंग थे खुद जिला प्रशासनिक मशीनरी और राजनीतिक सियासतदां भी इस मंजर देख इस ट्रे¨नग की गंभीरता का अनुमान लगा रहे थे।


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