बिना जीते तीन साल रहा प्रधान का रूतबा
जागरण संवाददाता, बदायूं : गांवों में प्रधानी का चुनाव इन दिनों मूंछ की लड़ाई बना हुआ है। इस चुनाव
जागरण संवाददाता, बदायूं : गांवों में प्रधानी का चुनाव इन दिनों मूंछ की लड़ाई बना हुआ है। इस चुनाव में कहीं परिवार तो कहीं रिश्तेदार आमने-सामने हैं। प्रधानी के पिछले कार्यकाल में रिजौला ग्राम पंचायत की प्रधानी तो किसी और ने जीती थी, लेकिन तीन सदस्यीय सदस्यों के पास तीन साल तक बिना चुनाव लड़े प्रधान का रूतबा रहा। निर्वाचित प्रधान इस कदर विवादों में घिरे रहे कि उन्हें मेडिकल बोर्ड के सामने सफाई देते नहीं बना।
वर्ष 2010 में हुए ग्राम प्रधान के चुनाव में म्याऊं ब्लाक के रिजौला गांव से पोशाकी लाल प्रधान निर्वाचित हुए। वह प्रधान तो जरूर बने, लेकिन गांव में दिखाई नहीं दे रहे थे। महीनों गुजर गए तो विरोधियों ने इसे मुद्दा बनाया। पता चला कि वह शहर में एक नेता जी के यहां नौकरी कर रहे हैं। मामला जिला प्रशासन तक पहुंचा तो जांच-पड़ताल कराई गई तो उन्हें मानसिक रोगी पाया गया। मेडिकल बोर्ड के सामने पेश किया गया। कई दौर की जांच होने के बाद चिकित्सकों की टीम ने उन्हें मानसिक रोगी घोषित कर दिया और एक जुलाई 2013 को उन्हें प्रधान पद से पदच्युत कर दिया गया। ग्राम पंचायत सदस्य राजपाल, राजेंद्रर, सुनील की तीन सदस्यीय समिति गठित कर उन्हें प्रधान का कामकाज देखने की जिम्मेदारी सौंपी गई। 25 मई 2015 तक इसी समिति ने कामकाज देखा, आखिरी दिनों में समिति को खत्म कर ग्राम पंचायत सदस्य अजय पाल को प्रधाना मनोनीत किया गया। हालांकि इसके बाद ही पंचायत चुनाव की प्रक्रिया शुरू हो गई और वह नाम के ही मनोनीत प्रधान बने। पिछले तीन साल से इस गांव की प्रधानी पूरे जिले में चर्चा का विषय बनी रही। एक बार गांव में चुनावी सरगर्मियां बढ़ने लगी हैं।
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