जैसे प्यासे पंछी को नदी का किनारा दिख गया
बदायूं : पंचायती चुनाव का जोरदार शुभारंभ। गांव की सियासी बयार में खेत-खलियान पर पूरा ध्यान नहीं दे
बदायूं : पंचायती चुनाव का जोरदार शुभारंभ। गांव की सियासी बयार में खेत-खलियान पर पूरा ध्यान नहीं दे पा रहे थे किसान। इधर, सियासी अखाड़े में जीत का सेहरा किसके सिर बंधेगा इमसें अभी वक्त है मगर, लोकतंत्र में वोटरों ने अधिकार का प्रयोग पूरी सूझ-बूझ से किया। शाम ढलने से पहले मतदान संपन्न हुआ तो लोगों को अपनी फसलों की सुध आई और बोले कि अब चलो खेतों की ओर ..। जंगल में खड़ीं जो फसलें पूरी तरह से देखभाल के लिए तरस सी रही थीं, वह अब अपने खिदमतगार की शक्ल देखते ही झूम उठीं। जैसे किसी प्यासे पंछी को नदी का किनारा दिख गया हो।
लोकतंत्र में गांव की सियासत का सबसे मजबूत चुनाव कह जाने वाले पंचायती चुनाव की सरगर्मियां करीब एक साल पहले से चल रही थीं। शाम को खेतों से लौटने के बाद गांव में जगह-जगह लगने वाली चौपालों में भी चुनावी चर्चाएं तेज हो चुकी थीं। संभावित प्रत्याशी भी अंदर ही अंदर अपनी चुनावी तैयारियां करने में लगे हुए थे। मगर आरक्षण स्पष्ट न होने से कोई भी खुलकर चुनावी मैदान में नहीं हो आ रहा था। करीब तीन महीने पहले पंचायती चुनाव की प्रक्रिया तेज हुई तो आरक्षण की स्थिति भी काफी समय पहले ही स्पष्ट कर दी गई। इसके बाद अपनी-अपनी सीटों के हिसाब से प्रत्याशी पूरी तैयारी के साथ चुनाव मैदान में आ गए। वोटरों को रिझाया गया तो सियासी हवाएं तेज होने लगीं। सियासी माहौल बना तो गांव का माहौल भी बदल गया। प्रत्याशियों ने अपने-अपने समर्थकों को चुनाव में लगाया। लोकतंत्र के इस जश्न में अधिकांश किसान अपनी फसलों को भूलकर इसमें शामिल हो गए। अब जब चुनाव दहगवां, इस्लामनगर और सहसवान में संपन्न हो गया है तो यहां के किसान व ग्रामीण पूरा ध्यान खेतों और फसलों पर लगाने को निकल पड़े हैं।