पीड़ित परिवार को पहले ही हो गया था निष्कर्ष का आभास
बदायूं : कटरा सआदतगंज कांड की जांच में सीबीआइ ने अपने निष्कर्षो का खुलासा भले ही अब किया है, लेकिन प
बदायूं : कटरा सआदतगंज कांड की जांच में सीबीआइ ने अपने निष्कर्षो का खुलासा भले ही अब किया है, लेकिन पीड़ित परिवार के साथ ही पूछताछ में शामिल गांव वालों को इसका आभास पहले ही हो गया था। तभी तो पीड़ित पक्ष ने वारदात के मदद में मिले लाखों रुपए बैंक से निकालकर ठिकाने लगाने में जुट गया था। इतना ही नहीं सिर्फ लाइ डिटेक्शन व दो अन्य टेस्टों को लेकर जंतर-मंतर दिल्ली तक धरना देने वाले पीड़ित पक्ष के लोग अब खामोशी से न्याय की बात कह रहे हैं। सीबीआइ को इसकी भनक लगी तो उसने भी पीड़ित पक्ष की इस गतिविधि को संज्ञान में लेकर भी पूछताछ भी की।
कटरा सआदतगंज कांड की जांच में सीबीआइ जैसी शीर्षस्थ एजेंसी को भी क्लू जुटाने में खूब पसीने बहाने पड़े। इसका खास कारण यह भी रहा कि पीड़ित पक्ष खुद ही रटी-रटाई भाषा बोल रहा था। इतना ही नहीं मीडिया के सामने खड़ी बोली का इस्तेमाल करने वाला पीड़ित पक्ष जब सीबीआइ के अधिकारियों के सामने पहुंचता था तो ठेठ गंवई की भाषा बोलता था, जिसे समझना कठिन होता। अंतत: सीबीआइ ने विभिन्न चैनलों को दी गई उनकी वाइट की क्लिप दिखाकर पीड़ित पक्ष को खड़ी बोली में बात कहने के लिए विवश किया। पीड़ित पक्ष लगातार बयान बयान भी बदलता रहा, क्योंकि अलग-अलग लोगों के साथ हुई बातचीत के आधार पर जब भी कोई विरोधाभासी बात आती तो सीबीआइ तुरंत दूसरे के बयान का वीडियो सुनवा देती थी। सीबीआइ को सबसे बड़ी कामयाबी उस वक्त मिली, जब बयानों के आधार पर ही एजेंसी ने पीड़ित परिजनों के समक्ष मुख्य गवाह की भूमिका का पर्दाफाश कर दिया। यह स्वीकारोक्ति खुद मुख्य गवाह नजरू ने की थी, जिसकी सीबीआइ ने वीडियो क्लिपिंग भी तैयार कर ली थी। यही वह अचूक हथियार था जिसे देखने के बाद पीड़ित परिवार और मुख्य गवाह के बीच दूरियां बढ़ने लगीं और यहीं से सीबीआइ को क्लू मिलने शुरू हो गए। चूंकि पूछताछ में एक के बाद एक सच परत-दर-परत सामने आता जा रहा था, इसलिए पीडि़त पक्ष यह समझने लगा था कि अब असली कहानी सामने आ ही जाएगी। सीबीआइ को इस पूछताछ में यह भी पता चला कि पीड़ित परिजन वास्तव में कई सच्चाई से अनभिज्ञ रहे। वे बिरादरी के कुछ लोगों के समझाने के अनुसार बयान देते रहे। सीबीआइ ने पीड़ित परिजनों से कई ऐसे सवाल दागे, जिनका उनके पास कोई संतोषजनक जवाब नहीं था। मसलन, जब लड़कियां रात आठ बजे गायब हुईं तो पुलिस को सूचना रात डेढ़ बजे क्यों दी गई। दूसरा बड़ा सवाल था कि जब साढ़े आठ बजे ही नजरू ने देखा कि दोनों किशोरियां पप्पू के साथ गईं तो पीड़ित परिवार के लोग व उनके अन्य सहयोगी सबसे पहले पप्पू के यहां क्यों नहीं गए। पीड़ित परिजनों के अनुसार ही वे लोग रात में करीब दो बजे पहली बार चौकी इंचार्ज के साथ मुख्य आरोपी पप्पू के घर गए थे। बाद में खुद पीड़ित परिजनों ने कुबूल किया कि गांव के दो लोगों को पहले भी पप्पू के घर भेजा गया था और तब भी पप्पू अपने घर में ही था।