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संत की परिभाषा ज्ञान से होती है : ब्रह्मेशानंद

आजमगढ़ : दिव्य ज्योति जागृति संस्थान के तत्वावधान में रविवार को सिधारी स्थित राहुल प्रेक्षागृह में आ

By Edited By: Published: Sun, 02 Aug 2015 07:31 PM (IST)Updated: Sun, 02 Aug 2015 07:31 PM (IST)
संत की परिभाषा ज्ञान से होती है : ब्रह्मेशानंद

आजमगढ़ : दिव्य ज्योति जागृति संस्थान के तत्वावधान में रविवार को सिधारी स्थित राहुल प्रेक्षागृह में आयोजित गुरु पूर्णिमा महोत्सव में आस्था का संगम दिखा। महोत्सव में संत आशुतोष महाराज के तमाम अनुयाई शामिल हुए। इस दौरान तमाम संतों ने अपने-अपने विचार व्यक्त कर गुरु-शिष्य की परंपरा का निर्वहन किया।

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उपस्थित जनसमूह को संबोधित करते हुए आशुतोष महाराज के शिष्य स्वामी ब्रह्मेशानंद ने कहा कि मानव जीवन में सतगुरु का होना आवश्यक है। मानव संत के सानिध्य से ही सुसंस्कार प्राप्त करता है। दीक्षा की प्राप्ति भी एक पूर्ण संत के माध्यम से ही सार्थक होती है। स्वामी अर्जुनानंद ने कहा कि आज समाज में विभिन्न प्रकार के संत भगवा धारण किए घूम रहे हैं। संत की परिभाषा उनकी वेश-भूषा नहीं उनका ज्ञान हुआ करता है। कहने का तात्पर्य यह कि संत सतगुरु हमारे जीवन में आकर केवल परमात्मा की बातें नहीं करते वरन हमारे घट के भीतर परमात्मा का दर्शन भी करवाते हैं अर्थात हमारे दिव्य नेत्र खोल देते हैं। कार्यक्रम में अन्य संतों ने भी अपने विचार व्यक्त किए। कार्यक्रम का संचालन स्वामी प्रबुद्धानंद ने किया। इस अवसर पर जोखू शाह, कैलाश प्रसाद, गोपाल जी, लकी, प्रहलाद ¨सह, कन्हैया लाल, उमेश, पवन, गौरीशंकर, शिवकुमार, हरेन्द्र ¨सह, अंशू, कामता प्रसाद, ममता ¨सह, उषा राय, गिरीजा देवी, शांति देवी, किरन ¨सह सहित तमाम लोग उपस्थित थे।


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