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'भिखारिन' ने की अमीर-गरीब की पहचान

आजमगढ़ : सिधारी स्थित राहुल प्रेक्षागृह में 10 वें आरंगम्- 2014 के दूसरे दिन नाटक 'भिखारिन' की शानदा

By Edited By: Published: Sun, 21 Dec 2014 08:45 PM (IST)Updated: Sun, 21 Dec 2014 08:45 PM (IST)
'भिखारिन' ने की अमीर-गरीब की पहचान

आजमगढ़ : सिधारी स्थित राहुल प्रेक्षागृह में 10 वें आरंगम्- 2014 के दूसरे दिन नाटक 'भिखारिन' की शानदार प्रस्तुति ने दर्शकों का मन मोह लिया। कलाकारों की प्रस्तुति को दर्शकों ने खूब सराहा। नाटक 'भिखारन' एक स्वार्थरहित मातृत्व की कहानी है।

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एक अंधी भिखारिन को एक बच्चा मिलता है, जिसे वह अपनी कोख से जन्मे बच्चे से भी ज्यादा प्यार करती है। भीख मागकर वह उसके लिए कुछ पैसे जमा करती है। उसे वह नगर के सेठ के पास रख देती है, जिससे बच्चे की पढ़ाई आदि हो सके। अचानक बच्चे के बहुत बीमार हो जाने के कारण वह अपने पैसे के लिए सेठ के पास पहुंचती है। इस दौरान सेठ यह जान जाता है की भिखारन के पास का बच्चा उसका खोया हुआ बच्चा है और उसे वह ज़बरन अपने यहां ले आता है। अनजान लोगों को देख बच्चे की हालत और भी खराब हो जाती है और सेठ उसे बचाने के लिए भिखारिन से भीख मागती है। जैसे ही भिखारिन आती है बच्चा ठीक हो जाता है। यह नाटक इस पर भी प्रकाश डालता है की कौन अमीर है और कौन गरीब। इस नाटक के लेखक रवीन्द्र नाथ टैगोर लिखित इस नाटक का मंच पर अभिनय विभा रानी ने किया। और यह एकल अभिनय है। विभा अकेले एक घटे अभिनय कर दर्शकों का मन जीत लेती हैं और यह आम बात नहीं कला से प्रेम करने वाले ही कला को पहचानते हैं और जीवन को खुशी-खुशी जीते हैं।

आज 'निठल्ले की डायरी' की प्रस्तुति

आजमगढ़ में होने वाला यह 10 वां आरंगम् है, जो अभिशेक पंडित और ममता पंडित की नाट्य संस्था ''सूत्रधार के आयोजन से हो रहा है, जो शहर ही नहीं पूरे जनपद के लिए गर्व की बात है की बिना सरकारी सहयोग से भी राष्ट्रीय महोत्सव का आयोजन हुआ है। सोमवार को तीसरे दिन की चौथी प्रस्तुति जबलपुर की ''निठल्ले की डायरी'' और कव्वाली होगी।

रंगमंच नहीं तो क्या होता

आजमगढ़ : महोत्सव से पूर्व ऋषिकेश सुलभ की अध्यक्षता में संगोष्ठी हुई। भारत के बड़े लेखकों में से एक है और कई नाटक व उपन्यास की रचना करने वाले ऋषिकेष सुलभ ने संस्कृति को आगे बढ़ाने में बहुत बड़ा योगदान दिया है।उन्होंने कहा की परंपरा में ऐसा सब कुछ नहीं होता, जिसको हम लेकर चले बहुत सारा अंश सड़ा -गला मिलता है और हमें उसे छोड़ कर चलना पड़ता है। कहा कि यदि हम इसे छोड़ कर आगे नहीं बढ़ते तो मृतकों के साथ पड़े होते। उन्होंने कहा कि अगर देखा जाय तो हमारे देश में बहुत सी परम्परा है। क्या आप उसे ले कर चलना चाहेंगे। दहेज परम्परा, भ्रूणहत्या जैसी ऐसी कई परम्पराएं है, क्या आप लेकर चलेंगे, नहीं ना तो फिर कला को क्यू छोड़े। अगर आप के शहर में रंगमंच नहीं होता तो क्या हुआ। बड़ी बात ये नही की दो हजार लोग रंगमंच करते है। बड़ी बात तो यह है कि उन दो हजारों में आप का नाम है या नहीं। आप आगे बढि़ए लोग जरूर आगे आएंगे और देखिए रंगमंच कैसे आगे बढ़ता है। इस मौके पर शशिभूषण प्रशांत, संगम पाण्डेय, अनिल रंजन भौमिक, अजीत राय, कुंवर अग्रवाल उपस्थित थे।


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