दर्शकों ने सिनेमा के देखे कई रंग
आजमगढ़ : आजमगढ़ फिल्म सोसाइटी द्वारा नेहरू हाल में आयोजित तीसरे आजमगढ़ फिल्म फेस्टिवल के दूसरे दिन जिला पंचायत स्थित नेहरू हाल में दर्शकों को सिनेमा के कई रंग देखने को मिले। दर्शकों ने 1946 में बनी ख्वाजा अहमद अब्बास निर्देशित 'धरती के लाल' देखी तो उन्हें 'गुलाबी गैंग' के जरिए उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड में महिलाओं के जुझारू संगठन के आदोलन और उसके अन्तर्विरोध से भी परिचित होने का मौका मिला। मशहूर अभिनेत्री जोहरा सहगल को याद करते हुए वर्ष 2012 में उनसे की गई दस्तावेजी बातचीत भी दिखाई गई जो एक अदाकारा के जरिये गुजरे जमाने को समझने के साथ-साथ प्रगतिशील आदोलन के इतिहास को भी बताती है।
सबसे पहले 'धरती के लाल' दिखाई गई। यह उन फिल्मों में है जिसने भारतीय यथार्थवादी सिनेमा की नींव डाली। यह इंडियन पीपुल्स थियेटर्स एसोसियेशन (इप्टा) का एकमात्र औपचारिक निर्माण है। यह ख्वाजा अहमद अब्बास की बतौर निर्देशक पहली फिल्म थी। बलराज साहनी-दमयंती साहनी और बाग्ला थियेटर के नामचीन शम्भू मित्रा-तृप्ति मित्रा ने इसमें अभिनय किया था। यह फिल्म बंगाल के अकाल की त्रासदी के अनेक आयामों को सामने रखती है और शोषण के खिलाफ चेतना जगाती है। इसके बाद दिखायी गई निष्ठा जैन निर्देशित 'गुलाबी गैंग' उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड इलाके के बादा गुलाबी गैंग नाम के महिलाओं के संगठन और उसके संघर्ष के बारे में है। इस संगठन की महिलाएं गुलाबी साड़ी पहनती हैं और हाथ में लाठी लिए महिलाओं पर होने वाले अत्याचार के खिलाफ आदोलन छेड़ती हैं। यह फिल्म एक तरफ सम्पत पाल को पितृ सत्तात्मक दबावों से लोहा लेने वाली महिला के रूप में दिखाती है, साथ ही सम्पत पाल को खास जगह पर व्यवस्था की गणित से संचालित भी दिखाती हैं। यह फिल्म एक आदोलन के बढ़ने-बनने से लेकर उसके कमजोर पहलुओं की ओर भी इशारा करती है।
दोपहर के सत्र में दिखाई गई शबनम विरमानी की डाक्यूमेंटरी ' हद अनहद ' 13वीं शताब्दी के महान क्रांतिकारी कवि कबीर को केंद्र में रखकर बनाई गयी फिल्म है। यह फिल्म समाज के विभिन्न समुदायों के भीतर पल-बढ़ रहे अंधविश्वासों-कर्मकाडों पर गहरी चोट करती है। शबनम विरमानी की यह फिल्म कबीर-गायन के माध्यम से इसी कबीर को दर्शकों के सामने लाती है।
शाम के सत्र में आजमगढ़ शहर और देहात में सिनेमा आदोलन के विकास पर परिचर्चा हुई जिसमें डा. स्वस्ति सिंह, डा. बद्रीनाथ, डा. बाबर अशफाक, मनोज कुमार सिंह ने भाग लिया। इस परिचर्चा में वक्ताओं ने ऐसे आयोजनों में जनभागीदारी बढ़ाने, इसे दूर-दराज क्षेत्रों में भी आयोजित करने के बारे में सुझाव दिए।