सरकार ने तोड़ी शर्त, गर्त में चला गया अस्पताल
नीरज चौरसिया
अहरौला (आजमगढ़) : इसे सरकार की अनदेखी नहीं तो और क्या कहें। जब मांग उठ रही थी अस्पताल की तो सरकार ने कहा भूमि नहीं मिल रही है। भूमि भी मिल गई इस शर्त पर कि परिवार के कम से कम एक सदस्य को नौकरी दी जाए। उस समय शर्त मान भी ली गई लेकिन शर्त पूरी नहीं हो सकी। अस्पताल बना और इलाज भी शुरू हो गया। शर्त पूरी न होने पर भूमि देने वाले के पुत्र ने न्यायालय की शरण ली और वहां से आदेश जारी हुआ कि नौकरी नहीं मिल सकती लेकिन भूमि का मुआवजा मिलना ही चाहिए। फिलहाल नौकरी और मुआवजा ठंडे बस्ते में चला गया और उसी के साथ गर्त में चला गया अस्पताल। 50 गांवों की उम्मीदों पर पानी फिर गया।
बात हो रही है क्षेत्र के गोपालगंज अतिरिक्त प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र की। कभी इसका संचालन एक किराए के कमरे में होता था। यहां सरकारी भवन के लिए जनता ने 1994 में तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री बलराम यादव से माग किया और 10 बेड के अतिरिक्त प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र निर्माण के लिए स्वीकृति मिल गई।
निर्माण के लिए सरकारी भूमि न मिलने पर क्षेत्र के रायपुर दवन निवासी रामअधीन सिंह ने अपनी 26 बिस्वा भूमि अस्पताल बनाने के लिए दे दिया। साथ में शर्त रखी कि अस्पताल बनने के बाद परिवार के दो लोगों को नौकरी दी जाएगी। इसी शर्त पर अस्पताल का निर्माण शुरू हुआ। इस अस्पताल की लागत 36 लाख थी। अस्पताल का निर्माण कार्य पूर्ण हो चुका था। आवास बन रहे थे और उसी दौरान 1997 में यह अस्पताल एक छोटे से कमरे में शुरू कर दिया गया।
वहा न तो बिजली की व्यवस्था थी और न ही पानी की। सरकार ने भूमि देने वाले की शर्त पूरी नहीं की। अब यह अस्पताल भूमि देने वाले के पुत्र अवधेश सिंह द्वारा दायर मुकदमे का शिकार हो गया है। हाईकोर्ट द्वारा एक अपै्रल 2014 को जिलाधिकारी को निर्देशित किया गया कि भूमि के बदले नौकरी नहीं दी जा सकती लेकिन भूमि का पूरा मुआवजा हर्जाना सहित दिलाया जाए। आज हालत यह है कि अस्पताल चिकित्सक विहीन है। यह अस्पताल लगभग 50 गावों के केंद्र में है।
क्षेत्र के रायपुर निवासी अवधेश सिंह, निजामपुर निवासी मोहित राम, वाजिदपुर निवासी सीताराम निषाद, दुबावे निवासी अखंड प्रताप, वाजिदपुर निवासी मनीष कुमार सिंह, सुबास राम, रामपत सिंह, राजाराम का कहना है कि विभाग चाहे तो भूमि का पूरा मुआवजा देकर इस का बेहतर संचालन करा सकता है।