मिनरल वाटर नहीं, दूषित पानी पी रहे आप
जागरण संवाददाता, औरैया : यह खबर पढ़ने के बाद सावधान हो जाइए। जिस पानी को आप मिनरल वाटर समझकर पी र
जागरण संवाददाता, औरैया :
यह खबर पढ़ने के बाद सावधान हो जाइए। जिस पानी को आप मिनरल वाटर समझकर पी रहे वो दूषित या साधारण पानी हो सकता है। जिले में मिनरल वाटर के नाम पर बोतल, डिब्बा और पाउच पैक में खराब पानी की बिक्री हो रही है। शहर में ऐसे नकली उत्पादों की भरमार है। दर्जनों स्थानों पर इनकी बिक्री हो रही है। खुद खाद सुरक्षा विभाग भी यह सच स्वीकार करता है। विभाग के मुताबिक बोतलों-पाउचों में कंपनी का नाम-पता, रजिस्ट्रेशन नम्बर आदि तो लिखा होता है लेकिन ये कंपनियां कहीं दर्ज ही नहीं हैं। दिलचस्प यह भी है कि विभाग ने पिछले वर्ष चेकिंग में एक भी वाटर प्लाट मानक के अनुरूप नहीं पाया, फिर भी अब तक कार्रवाई नहीं हुई। इससे इन प्लांटों को संरक्षण का सवाल खड़ा होता है। हालाकि विभाग के अधिकारी जल्द कार्रवाई की बात कह रहे हैं।
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गर्मी आते ही बढ़ती बिक्री
शहर में गर्मी बढ़ते ही बोतल बंद व ठंडे पाउच के पानी की बिक्री बढ़ रही है। माग बढ़ने से इनके ब्रांडों की संख्या भी दिनोंदिन बढ़ रही है। न तो पानी की गुणवत्ता पर ध्यान दिया जा रहा है और न ही मानक पर। शहर में करीब आधा दर्जन प्लाट हैं जहा पानी डिब्बों में भरकर घरों व कार्यालयों में सप्लाई किया जा रहा है। यहा पानी के पाउच भरने का काम भी होता है जिनकी कीमत 10 से 20 रुपये डिब्बा तथा दो रुपये पाउच है।
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न टंकी की सफाई का पता, न फिल्टर का
वाटर प्लाटों में स्वच्छता का नामों निशान नहीं होता। जिन टंकियों में पानी भरा रहता है वह भी कभी साफ की गई हैं या नहीं, पानी को फिल्टर किया जाता है कि नहीं, इसे देखने वाला कोई नहीं। टंकी से पानी निकाल कर सीधा डिब्बों में भरा जाता है। जो पाउच शहर में दो रुपये का बेचा जाता है उसमें अक्सर गंदगी निकलती है।
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गावों की ओर बढ़ा व्यापार
मिनरल प्लाट के लिए अधिकारियों के पचड़े से बचने के लिए अब यह धंधा गावों की ओर बढ़ चला है। वहां काम करने वाले भी आसानी से मिल जाते हैं। गाव से निकल कर सीधा हाईवे पर पानी सप्लाई का काम होता है। हाईवे पर दुकानों को पाउच की सप्लाई करने वाली कई गाड़ियां भी चल रही हैं।
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यह है लाइसेंस की प्रक्रिया
मिनरल वाटर प्लाट के लिए लाइसेंस आवेदन दिल्ली में ब्यूरो आफ इंडियन स्टैंटर्ड को करना होता है। इसकी फीस तीन लाख रुपये से ऊपर है। ब्यूरो आफ इंडियन स्टैंडर्ड के अधिकारी मौके पर जाच करते हैं और पानी का नमूना लेते हैं। नमूना पास होने के बाद अनुमति पत्र दिया जाता है। यह पत्र जिलास्तर पर खाद्य विभाग को दिखाया जाता है। इसके बाद प्लाट का लाइसेंस जारी होता है। लाइसेंस से पहले मशीनों की गुणवत्ता की जाच सहित कई प्रावधान भी पूरे कराए जाते हैं।
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प्लाट के लिए जरूरी शर्ते
मिनरल वाटर प्लाट लगाने के लिए दो सौ फीट की बोरिंग होनी चाहिए। वहा पानी खारा न आता हो और वाटर लेबिल ठीक हो। इसके लिए दो मशीनों की आवश्यकता होती है। एक आरओ मशीन और दूसरी चिलर मशीन।
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जल्द की जाएगी कार्रवाई
जिले में एक दर्जन से अधिक मिनरल वाटर के प्लाट हैं। किसी के पास लाइसेंस नहीं है। पिछले वर्ष कुछ नमूने लिए गए थे जो जाच में फेल हो गए। इसी सप्ताह प्लाट संचालकों के खिलाफ अभियान चलाया जाएगा।-पंकज कुमार, जिला अभिहीत अधिकारी।
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सेहत को होता नुकसान
आरओ के पानी का लगातार इस्तेमाल नुकसानदायक हो सकता है। यह कैल्सियम और मैग्नीशियम नष्ट करता है। इससे हड्डिया कमजोर हो सकती हैं। पानी में कई जरूरी तत्व फिल्टर होने के दौरान नष्ट हो जाते हैं। पानी का क्लोरीनेशन होना जरूरी होता है जिससे बैक्टीरिया तो नष्ट हो जाता है, लेकिन मिनरल्स पर कोई असर नहीं पड़ता।-डा. शिवम अग्रवाल, हड्डी रोग विशेषज्ञ।