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नोटबंदी: 3 : थम गई है हथकरघा मशीनों की रफ्तार

इटावा,जागरण संवाददाता : गांधी के सपनों को पंख लगाने वाला हैंडलूम व्यवसाय भी नोटों की बंदी की चपेट मे

By Edited By: Published: Thu, 01 Dec 2016 06:24 PM (IST)Updated: Thu, 01 Dec 2016 06:24 PM (IST)
नोटबंदी: 3 : थम गई है हथकरघा मशीनों की रफ्तार

इटावा,जागरण संवाददाता : गांधी के सपनों को पंख लगाने वाला हैंडलूम व्यवसाय भी नोटों की बंदी की चपेट में आ गया है। हाल यह है कि लम्बे समय से करघों की आवाजें खो सी गई है। हजारों कामगार नोटबंदी के ग्रहण के कारण भूखों मरने की स्थिति में पहुंच रहे हैं।

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जनपद का इकलौता बुनकर हथकरघा उद्योग नोट बंदी के फैसले के बाद तबाही की कगार पर पहुंच गया है। जापान जैसे देशों को हैंडलूम व बेडशीट का निर्यात करने वाले व्यापारी नकदी की समस्या के कारण हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं। वहीं हथकरघा चलाने वाले कारीगर भूखों मरने की कगार पर हैं। हथकरघा मशीनों की रफ्तार थम गई है। करोड़ों रुपये का माल बाजार में डंप पड़ा हुआ है। माल की बिक्री न होने की वजह से हथकरघा सामान बेचने वाले व्यापारी भी हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं।

शहर में करीब एक दर्जन इलाकों शाहग्रान, मेहतर टोला, वाहअड्डा, पथवरिया, करनपुरा, लालपुरा, रामलीला रोड में बड़ी संख्या में हैंडलूम का कारोबार होता है। यहां पर हैंडलूम से निर्मित बेडशीट के साथ-साथ गमछा, तहमद, चादर व खादी का निर्माण किया जाता है। इस कार्य में शहर के अंसारी व शंखवार समाज के लोग बड़ी संख्या में लगे हुए हैं। नोट बंदी के फैसले के बाद से बाहर से आर्डर आना बंद हो गया है व कारीगरों से काम कराने वाले भी उन्हें आर्डर नहीं दे रहे हैं।

प्रतिमाह में 10 करोड़ का होता था व्यवसाय

8 नवंबर को नोट बंदी के फैसले से पहले शहर में बुनकर हथकरघा कारोबार लगभग 10 करोड़ का था। इसमें जापान को निर्यात के तौर पर बेडशीट, चादर भेजी जाती थी जो कि दिल्ली जयपुर व कोलकाता के विदेशी निर्यातकों के माध्यम से जा रही थी। जबकि लोकल मार्केट में गमछा, तहमद, चादर भी दिल्ली कोलकाता व बिहार उत्तर प्रदेश के शहरों में सप्लाई किया जाता था। नोट बंदी के बाद आर्डर आना बंद हो गए हैं और यह उद्योग बिल्कुल बंदी की कगार पर पहुंच गया है। शहर के प्रमुख थोक बाजार गुदड़ी बाजार में भी कोई माल उठाने वाला नहीं है। जिस बाजार में पैर रखने की जगह नहीं होती थी अब वहां सन्नाटा पसरा हुआ है।

बुनकर हथकरघा उद्योग में लागत का 30 फीसद बुनाई में 10 फीसद रंगाई में कारीगरों को देना पड़ता है। बैंकों से रुपये न मिल पाने के कारण कारीगरों को भुगतान नहीं हो पा रहा है जिसके कारण कारीगरों ने काम बंद कर दिया है। यह समस्या कब सुलझेगी यह कोई नहीं जानता। फिलहाल कारीगर हाथ पर हाथ धरे बैठा है।

- फारूख अंसारी निर्यातक

बुनकर हथकरघा उद्योग एक नजर में

- बुनकर इकाइयों की संख्या 500

- बुनकर फर्मों की संख्या 20

- लगे हुए हथकरघा 10,000

- काम में लगे लोग 50,000

- माह का अनुमानित व्यवसाय 10 करोड़


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