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कभी पानी से लबालब रहता था सरियापुर का तालाब

औरैया, जागरण संवाददाता : क्षेत्र के गांव सरियापुर स्थित तालाब काफी बड़ा है। करीब चार एकड़ में फैला यह

By Edited By: Published: Sun, 15 May 2016 06:50 PM (IST)Updated: Sun, 15 May 2016 06:50 PM (IST)
कभी पानी से लबालब रहता था सरियापुर का तालाब

औरैया, जागरण संवाददाता : क्षेत्र के गांव सरियापुर स्थित तालाब काफी बड़ा है। करीब चार एकड़ में फैला यह जलाशय कभी पानी से लबालब रहता था। गहराई इतनी थी कि एक के ऊपर एक खड़े चार हाथी भी डूब जाएं, लेकिन अब यहां मवेशियों के पीने लायक पानी भी नहीं है। तालाब में भरे पानी से गांव का भूजलस्तर तो दुरुस्त रहता ही था अचानक आई आपदा के समय भी ग्रामीण इसके पानी का उपयोग करते थे।

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ग्रामीणों की मानें तो बीस साल पहले तक यह तालाब आसपास के 70 गांवों में सबसे बड़ा तालाब माना जाता था। आज भी इतनी गहराई वाला तालाब क्षेत्र में कहीं नहीं है। गांव के सामान्य धरातल से तालाब करीब 35 फीट गहरा है। क्षेत्रफल व गहराई के आंकड़ों के हिसाब से इसमें करोड़ों लीटर पानी संग्रहीत किया जा सकता है।

विशेषज्ञों की मानें तो एक बार तालाब लबालब भर दिया जाए तो पांच साल तक बारिश न होने पर भी पानी पूरी तरह खत्म नहीं होगा। बात इतनी सी है कि इसे एक बार भरने का साहस कौन करेगा। इसके अलावा पानी की आवर्ती आपूर्ति के लिए भी संसाधन जुटाने होंगे, जिससे यह हर वर्ष भरा रहे। बरसात में जल संरक्षण का यह विशाल भण्डार बन सकता है। वैज्ञानिक ढंग से कायाकल्प करने पर आसपास के आधा दर्जन गांवों की हजारों एकड़ फसल भी इससे सींची जा सकती है।

प्रशासन ने तालाबों में वर्षा जल संरक्षण संयंत्र लगाने का जो बीड़ा उठाया है उसके लिए भी यह जलाशय मुफीद साबित हो सकता है। तालाब के सूखने से गांव की जलापूर्ति व्यवस्था पूरी तरह चरमरा गई है। तालाब से सौ कदम की दूरी पर दिनेश चतुर्वेदी के घर के सामने स्थित साठ फीट गहरा कुआं पूरी तरह सूख चुका है। गांवों के ज्यादातर कुएं व हैंडपंप जवाब दे चुके हैं। ग्रामीणों का कहना है कि तालाब सूखने से भूजल स्तर में भारी गिरावट आई है। मौसम वैज्ञानिकों के मुताबिक इस साल अच्छी बारिश की उम्मीद है। थोड़ी पहल करके ही वर्षा जल संरक्षण के जरिए इस तालाब को नया जीवन दिया जा सकता है।

तालाब भरे तो सूखे आंखों की नमी

गांव के दिनेश चतुर्वेदी का कहना है कि पानी की किल्लत से ग्रामीण परेशान हैं। वाटर लेबल बहुत नीचे चला गया है। घर के जल संसाधन बेकार होने पर पड़ोसी के दरवाजे पानी लेने जाना पड़ता है। कई बार इस कवायद में परिजनों की आंखें नम हो आती है। यदि यह जलाशय भर दिया जाए तो कुआं तालाब को नई ¨जदगी मिल सकती है।

पुरखों की विरासत न बचा पाने का दर्द

गांव के अखिलेश चतुर्वेदी का कहना है कि सैकड़ों साल पहले उनके पुरखों ने इस तालाब का निर्माण गांव में जलापूर्ति के लिए कराया था। उन्हें इस बात का दर्द है कि नई पीढ़ी इस विरासत को जीवंत नहीं रख पाई। अब भी कुछ नहीं बिगड़ा है तालाब का बुनियादी ढांचा बरकरार है। एक पहल और कुछ हिम्मत हौसले से पहले जैसी स्थिति हासिल की जा सकती है।


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