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बडे़ सोच की 'बालिका वधू'

By Edited By: Published: Sun, 28 Sep 2014 01:06 AM (IST)Updated: Sun, 28 Sep 2014 01:06 AM (IST)
बडे़ सोच की 'बालिका वधू'

अजय शुक्ला, औरैया : बारह साल की उम्र में हाथ भर के घूंघट की दुश्वारियों ने 'बालिका वधू' बनकर ससुराल पहुंची राजेश्वरी को फौलाद बना दिया। अठारह साल की उम्र में इस बालिका वधू ने जब घूंघट उठाया तो बाल विवाह के खिलाफ दीवार बनकर खड़ी हो गईं। कई मंडपों में पहुंचकर बालिका को वधू बनने से रोका। साथ ही महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने की उनकी पहल भी परवान चढ़ने लगी है।

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बालिका वधू बनकर ससुराल गौना गांव पहुंची राजेश्वरी के मन में परिवारिक जिम्मेदारियों को लेकर तो कुछ खास अरमान थे नहीं, हां वह पढ़ना जरूर चाहती थीं, लेकिन कम उम्र में शादी के बंधनों ने जैसे उनकी उमंग ही छीन ली थी। वह छह साल तक तो सब बर्दाश्त करती रहीं, लेकिन उसके बाद रूढि़यों के प्रति उनके धैर्य का बांध टूट गया। बंदिशों के खिलाफ उन्होंने जंग शुरू की तो क्षेत्र में शक्ति स्वरूपा की पहचान बनती चली गईं। आज वह महिला समाख्या की सक्रिय कार्यकर्ता हैं। साथ कार्य करने वाली महिलाएं और किशोरियां उनकी जिजीविषा और फौलादी इरादों को अपना आदर्श मानती हैं। बीते 20 सालों से वह विधवाओं को समाज की मुख्य धारा में शामिल कराने के लिए भी काम कर रही हैं। महिलाओं को आर्थिक आजादी दिलाने के लिए वह महिला समाख्या के जरिए स्वयं सहायता समूह बनवाकर उन्हें खेती, कुटीर उद्योग, पशु पालन, हस्त शिल्प के लिए प्रेरित करती हैं। बालिकाओं को शिक्षित कराने की दिशा में बीहड़ी क्षेत्र के दर्जन भर गांवों में समाख्या के स्कूल की शाखाएं शुरू कराई हैं।

इन घटनाओं ने बनाई पहचान

* ससुराल में अपनी विधवा जेठानी को देखा कि उन्हें वैवाहिक मांगलिक कार्यो में शामिल नहीं होने दिया जाता। नई बहू होने के चलते वह दो साल तो सब देखती रहीं, लेकिन उसके बाद जिद पर अड़ गईं कि उन्हें भी घर के सभी कामों में बराबरी का दर्जा दिया जाए। इसके लिए मोहल्ले की महिलाओं को भी समझाकर अपनी तरफ कर लिया। आखिर में समाज को उनकी बात माननी पड़ी।

* वर्ष 2009 में मोहल्ला ब्रह्मानगर में रसूखदार अधेड़ से 13 साल की लड़की की भांवरें पड़ने की सूचना पर समूह की महिलाओं के साथ पहुंच गईं। बाद में अधेड़ के बेटे के साथ बालिग होने पर शादी की शर्त पर मामला शांत हुआ।

भविष्य के लक्ष्य

* बीहड़ के हर मजरे में बालिका शिक्षा और प्रौढ़ शिक्षा के लिए समाख्या की शाखा स्थापित कराना।

* समाख्या के पारिवारिक न्यायालय के जरिए घरेलू हिंसा और दंपती के बीच लड़ाई झगडे़ समाप्त करैना।

* विधवा और परित्यक्त महिलाओं को घरेलू रोजगार के जरिए स्वावलंबी बनाना।


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