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तालों में कैद शौचालय, बच्चे भागें इधर-उधर

By Edited By: Published: Wed, 03 Sep 2014 01:35 AM (IST)Updated: Wed, 03 Sep 2014 01:35 AM (IST)
तालों में कैद शौचालय,  बच्चे भागें इधर-उधर

अनिल सिकरवार, औरैया

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हकीकत एक - प्राथमिक विद्यालय उमरी में शौचालय तो अर्से पहले बन गए, लेकिन टैंक अब तक नहीं बना। जिससे इसका उपयोग हो ही नहीं पा रहा है। शौचालय होने के बावजूद यहां बच्चों को इधर -उधर भागना पड़ता है।

हकीकत दो - प्राथमिक विद्यालय भटपुरा के शौचालयों का कभी ताला ही नहीं खुलता। बताते हैं कि यहां ग्रामीण स्कूल में घुसकर शौचालय का इस्तेमाल करते रहे हैं। ग्रामीणों की इस कारस्तानी का खामियाजा बच्चों को भुगतना पड़ रहा है।

हकीकत तीन - प्राथमिक विद्यालय दिबियापुर में बालक -बालिका के अलग -अलग शौचालय हैं, लेकिन पानी की टंकी नहीं है। दरवाजे का कुंडा भी टूटा हुआ है। यहां बंदरों की बहुतायत के चलते भी समस्या है। बजट न होने से मेंटीनेंस नहीं हो पा रहा है। जिसके कारण इसका उपयोग भी कम ही होता है।

यह स्थितियां हांड़ी के उस एक चावल की तरह हैं जिसके जरिए पूरे सिस्टम को आसानी से समझा जा सकता है। ' जागरण ' ने कुछ विद्यालयों का बतौर बानगी दौरा कर असलियत की पड़ताल की तो स्पष्ट तौर पर यह बिंदु सामने आया कि साफ -सफाई के लिए प्रबंध न होने का संकट न तो शौचालयों को तालों के कैद से बाहर होने दे रहा है और न ही छात्र-छात्राओं के इधर -उधर भागने की स्थिति पर विराम लगा पा रहा है। जिन विद्यालयों में शौचालय हैं ही नहीं वहां तो समस्या को समझा जा सकता है, लेकिन जहां शौचालय बने हैं जब वहां भी बच्चों की मुसीबत बरकरार है तो असलियत को समझा जा सकता है और यह अंदाजा भी लगाया जा सकता है कि सरकारी तंत्र ही नहीं ग्रामीण भी मुसीबत बढ़ा कर उन लोगों के लिए समस्या खड़ी कर रहे हैं जिनके लिए वास्तव में शौचालय बनवाए गए हैं। इस मसले पर कुछ बच्चों से भी बातचीत की गई तो उनमें झिझक जरूर थी, लेकिन उनके टूटे फूटे शब्द और चेहरे पर उभरने वाले भाव पूरी समस्या को बयां कर रहे थे। छात्रा शालिनी ने झिझकते हुए बताया कि शौचालय का ताला कभी नहीं खुलता। छात्र सुरेश का कहना था कि शिक्षकों से कहो तो घर जाने को कह दिया जाता है।

कई विद्यालयों में शौचालयों के बाहर पसरी गंदगी और खड़ी बड़ी -बड़ी घास यह बताने को काफी है कि इनका उपयोग कभी कभार भी नहीं होता।

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उनकी समस्याएं कोई नहीं सुनता

* प्राथमिक विद्यालय उमरी की हेडमास्टर अनीता राजपूत कहती हैं कि उनके यहां महिला स्टाफ भी है, लेकिन टैंक का निर्माण नहीं कराया गया। चुनाव के समय सख्ती हुई तो सीटें जरूर रखवा दी गई। कहा गया कि खेतों की तरफ होल कर इनका उपयोग शुरू कराओ, लेकिन ऐसा संभव है क्या। उन्होंने बताया कि साफ -सफाई के लिए भी पैसा नहीं आता और न ही गांव का सफाई कर्मी स्कूल की ओर ही आता है।

* भटपुरा प्राथमिक विद्यालय की हेडमास्टर दीप्ति अवस्थी कहतीं है कि ग्रामीणों से ज्यादा परेशानी है। ग्रामीण आकर शौचालय का इस्तेमाल करते हैं इस कारण बच्चों को ही शौचालय की चाबी सौंप दी है। साफ -सफाई की भी यहां समस्या होने पर उन्होंने बताया कि कोई व्यवस्था ही नहीं है। कई ग्रामीण तो ऐसे हैं जो शौचालय का ताला खुला न मिलने पर स्कूल परिसर में ही गंदगी फैला जाते हैं।

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करायेंगे स्थिति का आंकलन

औरैया : जिलाधिकारी माला श्रीवास्तव ने इस संबंध में बताया कि जिला स्तरीय अधिकारियों को लगाकर स्कूलों में शौचालयों की स्थिति का आंकलन कराया जाएगा। जिन विद्यालयों के शौचालय में ताले लटकते रहते हैं उनके लिए कौन जिम्मेदार है, इसकी पड़ताल भी होगी। जो भी दोषी होगा उसके खिलाफ कार्रवाई सुनिश्चित कराई जाएगी।


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