बिधूना के मतदाताओं की खामोशी बढ़ा रही बेचैनी
बिधूना(औरैया), संवाद सहयोगी : लोकसभा के चुनावी महासमर में कन्नौज सीट को प्रदेश की हॉट सीट माना जा रहा है। सैफई परिवार की पूरी ताकत इस सीट पर लगी है। प्रतिष्ठा की इस जंग में हार जीत का फैसला जिन मतदाताओं को करना है, लेकिन उनकी चुप्पी सियासी कुनबे को बेचैन कर रही है। यूं तो बिधूना, कन्नौज लोकसभा क्षेत्र की विधानसभा है, लेकिन हारजीत का असली फैसला यही विधानसभा क्षेत्र तय करता रहा है। बात 1967 की हो, चाहे सन् 2009 की हो। बिधूना के मतदाताओं ने जिस तरफ झुकाव लिया, जीत ने उसी प्रत्याशी के कदम चूम लिए।
इस बार के चुनावी महासमर में भाजपाई मोदी लहर का सहारा लिए हुए हैं तो वहीं सपा भी जीत के लिए पूरी ताकत झोंके हुए हैं। बसपा कैडर वोट के सहारे महासमर में ताल ठोंक रही है। सपा के लिए यह लोकसभा सीट प्रतिष्ठा से जुड़ी है। यही कारण है कि बिधूना पर उनकी खास नजर रही है। अतीत के झरोखों पर नजर दौड़ाए तो सन् 1967 के चुनाव में जब डा. राममनोहर लोहिया कन्नौज के सभी विधानसभा क्षेत्रों से हार गए तो लगा कि चुनाव में उनकी हार तय है, लेकिन बिधूना विधानसभा क्षेत्र के मतदाताओं ने हिसाब बराबर करते हुए उन्हें 10 हजार वोटों से जिताकर संसद भेज दिया। सन् 2009 के लोकसभा चुनाव में अखिलेश यादव को सबसे अधिक 57 हजार वोट बिधूना विधानसभा सीट से मिले थे।
बिधूना विधानसभा की सियासी गणित पर गौर किया जाए तो यहां इस बार 3,24,687 मतदाता प्रत्याशियों के भाग्य का फैसला तय करेगा, इसमें 1,91,099 पुरुष तथा 1,55,737 महिला मतदाता हैं। सन् 2009 में 50 फीसद मतदान हुआ था। परिणाम क्या होगा, यह तो भविष्य तय करेगा, लेकिन जिस तरह से मतदाता जागरूकता रैलियां निकाली गई, उससे उम्मीद है कि 24 अप्रैल को खुलकर मतदाता अपने मताधिकार का प्रयोग करेगा। यदि मतदाताओं ने पूरी रौ में वोट डाले तो सियासी समीकरण भी खासे चौंकाने वाले होंगे।