टिमटिमाते दिए से रोशन हो रहा समाज
चिंतामणि मिश्र, अमेठी : साठ साल की उम्र में सरकार ने तो उन्हें रिटायर कर दिया। लेकिन कर्मयोग की साधन
चिंतामणि मिश्र, अमेठी : साठ साल की उम्र में सरकार ने तो उन्हें रिटायर कर दिया। लेकिन कर्मयोग की साधना इतनी हावी हो चली थी कि जिंदगी के सातवें दशक में भी उनमें पढ़ने-पढ़ाने का जुनून वैसा ही है। उम्र के इस पड़ाव में भी उनका जज्बा नौजवानों जैसा है। हम बात कर रहे हैं जिले के मूर्धन्य गणितज्ञ बीएल श्रीवास्तव की। रिटायर होने के बाद भी वे बालिकाओं को नि:शुल्क तालीम बांट रहे हैं।
गौरीगंज के माधवपुर गांव में रहने वाले बीएल श्रीवास्तव को देखकर शायद ही कोई अंदाजा लगा सके कि वे शिक्षक हैं। अति साधारण में वेशभूषा में वे दसवीं व बारहवीं के बच्चों को गणित के सवाल ऐसे समझाते हैं,जैसे रामायण की कहानी। त्रिकोणमिति के ऊंचाई दूरी के सवालों को तो वे महज एक छड़ी के सहारे हल कर देते हैं। पहाड़गंज गांव के मूल निवासी बीएल श्रीवास्तव ने अठेहा व वाराणसी से शिक्षा ग्रहण करने के बाद शिक्षक की नौकरी के लिए आवेदन किया और 1969 में वे नौकरी में आ गए। पहले उनकी नियुक्ति प्रतापगढ़ में हुई। लेकिन बाद में वहां उनकी फैलती शोहरत देख उनका स्थानांतरण शहर के रणंजय इंटर कालेज में गणित के प्रवक्ता के रूप में कराया गया। जिससे कि क्षेत्र के बच्चों को उनका लाभ मिल सके। 2010 में बीएल श्रीवास्तव अपना कार्यकाल पूरा कर रिटायर हो गए। लेकिन इसके बाद भी उनकी कर्मयोग की साधना जारी रही। आज भी साइकिल सवार गुरूजी किसी भी बच्चे के सवाल पूछने पर न नहीं कर पाते हैं। स्कूलों में नि:शुल्क शिक्षा देने के साथ ही घर पर आने वाली छात्राओं और छात्रों को भी वे लगातार पढ़ा रहे हैं। इस बावत बीएल श्रीवास्तव कहते हैं कि मेहनत का परिणाम है कि सरकार खाने भर को दे रही है। किसी से मिले ज्ञान को अगर किसी को दे रहा हूं तो इसमें कौन सा बड़प्पन। मेरे सिर्फ बेटियां थी उनको पढ़ा दिया अब समाज की बाकी बेटियों को शिक्षा दान कर रहा हूं।