मुद्दा- इस जीवन रेखा पर सुस्ती का ग्रहण
अंबेडकरनगर : कई जिलों के बीच की दूरियां घटाने वाला कम्हरियाघाट सेतु का निर्माण चुनाव में मुद्दा नहीं
अंबेडकरनगर : कई जिलों के बीच की दूरियां घटाने वाला कम्हरियाघाट सेतु का निर्माण चुनाव में मुद्दा नहीं बन पाता। इस पुल के जल्द बनने को लेकर जनता आंदोलन तक कर चुकी, लेकिन माननीयों की ओर से इसे तरजीह नहीं दी जाती। यह पुल आजमगढ़, अंबेडकरनगर व गोरखपुर समेत पांच जिले के लाखों लोगों के लिए जीवन रेखा बन सकता है, लेकिन इसके निर्माण की फिक्र सांसदों व विधायकों को नहीं रही। ऐसे में जान हथेली पर रखकर उक्त जिलों के लोग नौ महीने पीपे के पुल व बाकी दिनों में नाव से आवागमन करने को विवश हैं। इस समस्या को लेकर वर्ष 2013 में गोरखपुर जनपद निवासी सतवंत प्रताप ¨सह व भिखारी प्रजापति की अगुवाई में आमरण अनशन व जल सत्याग्रह किया गया। मांगें पूरी न होने के कारण आंदोलनकारियों ने जलसमाधि लेने का प्रयास किया। इसे लेकर पुलिस व नागरिकों के बीच तीखी झड़प भी हुई। इस घटना के बाद केंद्र व प्रदेश सरकार को पुल निर्माण की सुध आयी। इसी क्रम में प्रदेश सरकार ने 35 करोड़ तथा विश्व बैंक ने एक सौ अठहत्तर करोड़ देकर पुल निर्माण शुरू कराया। सेतु निगम की नागपुर निर्माण इकाई को इसकी जिम्मेदारी दी गयी। गत वर्ष निर्माण पूरा होना था, लेकिन ऐसा नहीं हो सका। गोरखपुर जनपद की सीमा में कुल 27 पिलर तैयार हैं अब अंबेडकरनगर सीमा में कार्य होना है। इसके लिए निर्माण इकाई ने कम्हरिया घाट पर एक एकड़ भूमि किराये पर लेकर सभी सामग्री इकट्ठा कर ली है। सीमेंट के दो उच्च क्षमता के गोदाम तैयार हो गए हैं। लोहे की चद्दरों से पीपे बनाए जा रहे हैं, जिन्हें नदी में डालकर निर्माण सामग्री इसी रास्ते से जाएगी। कुल 16 पिलरों का निर्माण शेष है, जिसे शीघ्र पूरा होने का अनुमान है। मौके पर मौजूद ठेकेदार रमेश कुमार ने बताया कि एक सप्ताह में पीपे नदी में डालकर कार्य शुरू करा दिया जाएगा। अवर अभियंता आरके ¨सह ने भी इसकी ताईद की।
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पांच जिलों के लोगों को मिलेगी सहूलियत
आलापुर : दो वर्ष में निर्माण पूरा होने का विभागीय का हवाई साबित हुआ, जिससे लागत भी बढ़ने का अनुमान है। पुल को मार्च 2016 तक पूरा होना था, लेकिन निर्माण इकाई की सुस्त कार्यशैली का खामियाजा आमजन को भुगतना पड़ा रहा है। ऐसे में सात माह अस्थाई पीपे के पुल से तथा पांच माह नौका से यात्रा करनी पड़ती है। पुल बन जाने से गोरखपुर व अंबेडकरनगर के साथ बस्ती, संतकबीरनगर, आजमगढ़ आदि जिलों के लोगों को सहूलियत होगी।
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चुनाव बाद भूल जाते हैं वादे
आलापुर : जागरूक मतदाता ¨वदेश्वर त्रिपाठी कहते हैं कि चुनाव में नेता वोट लेने जब आते हैं तो बड़े-बड़े वादे करते हैं। इसके बाद सब भूल जाते हैं, उनको सिर्फ अपना लाभ दिखाई देता है। जनता के सुख-दुख से कोई मतलब नहीं रहता है। अधिवक्ता गिरधारी तिवारी कहते हैं कि हर चुनाव में पुल की मांग करते रहे हैं, लेकिन जनप्रतिनिधियों से आश्वासन के झुनझना के अलावा कुछ नहीं मिला। सुरेंद्र मोहन मिश्र बोले कि पुल निर्माण न होने से इस जिले का विकास कार्य प्रभावित हो रहा है। कई लोगों ने रोजगार बंद कर दिया है। उम्मीद थी कि तीन वर्ष में बन जाएगा, अब निराशा हो रही है। अर¨वद शर्मा ने कहा कि हम लोग हमेशा नाव से आवागमन करते रहे हैं। पुल निर्माण शुरू होने से जो खुशी हुई, वह निराशा में बदल रही है। लोग जनप्रतिनिधियों के आश्वासन पर विश्वास नहीं करते हैं। पता नहीं कब तक निर्माण पूरा होगा।