पुल की गुणवत्ता पर संसद में उठा सवाल
आलापुर (अंबेडकरनगर) : घाघरा नदी के कम्हरिया घाट पर पुल के निर्माण की गुणवत्ता पर स्थानीय सांसद ने ना
आलापुर (अंबेडकरनगर) : घाघरा नदी के कम्हरिया घाट पर पुल के निर्माण की गुणवत्ता पर स्थानीय सांसद ने नाराजगी जाहिर की है तथा मामले को संसद में उठाया, जिस पर जांच का निर्देश हो गया है।
गौरतलब है कि कम्हरिया घाट पर बहुप्रतीक्षित पुल का निर्माण कार्य की प्रक्रिया दिसंबर 2013 में ही भूमि पूजन के उपरांत शुरू दी गई थी। ¨कतु धन आवंटन में पेच फंस जाने के कारण कार्यदायी संस्था ने निर्माण करने से हाथ खड़े कर दिए है। जिससे आगामी जून 2016 तक निर्माण पूरा होने पर ग्रहण लग गया था। धन उपलब्ध होते ही कार्यदायी संस्था सेतु निगम की निर्माण इकाई ने कार्य शुरू कर दिया है। गत दिनों संतकबीरनगर के सांसद शरद त्रिपाठी के स्थानीय विधानसभा आलापुर आगमन पर यहां के लोगों ने शिकायत किया था। जिस पर सांसद मौके पर जाकर तकनीकी विशेषज्ञों के साथ जांच की और तमाम खामियां उभरकर सामने आ गई। जिस पर उन्होंने इसकी शिकायत जिलाधिकारी गोरखपुर से करते हुए मंगलवार को मामला लोकसभा में उठाया, जिस पर जांच के निर्देश हो गए है। इसकी पुष्टि करते हुए सांसद प्रतिनिधि महेंद्र दुबे ने विधानसभा आलापुर के मीडिया प्रभारी रामकृष्ण पांडेय ने की।
सत्याग्रह का परिणाम है पुल : कम्हरिया घाट पर पक्के पुल के निर्माण की मांग को लेकर सतवंत प्रताप ¨सह और भिखारी प्रजापति के नेतृतव में क्षेत्रवासियों ने वर्ष 2013 में जल सत्याग्रह किया था। सत्याग्रहियों के घाघरा में जल समाधि के लिए छलांग लगाने के कारण पुलिस एवं गामीणों में जमकर संघर्ष हुआ था। मामला शासन तक पहुंचा तो छह मई को नवार्ड ने आनन-फानन में मौका मुआयना करके पुल निर्माण के लिए 137.78 करोड़ रुपये स्वीकृत कर दिए। प्रदेश सरकार ने भी 34.40 करोड़ रुपये देने का ऐलान किया। पुल के दोनों तरफ 6.4 किलोमीटर लंबा एप्रोच मार्ग बनेगा। लागत करीब 76 करोड़ रुपये आएगी। जिसके लिए 26 हेक्टेयर भूमि अधिग्रहीत की जाएगी। मुआवजे के मद में 1.83 करोड़ रुपये दिए जाएंगे। 1412 मीटर लंबे पुल के निर्माण में कुल 96 करोड़ रुपये खर्च होंगे।
लाखों जनता को मिलेगी सहूलियत : कम्हरिया घाट पर पुल के निर्माण से गोरखपुर एवं अंबेडकरनगर की लगभग एक लाख जनता को काफी सहूलियत होगी। दोनों जनपदों के वा¨शदों को इलाहाबाद तक का आवागमन सुलभ हो जाएगा। इससे लगभग 70 किलोमीटर दूरी कम होगी। समय और ईंधन की बचत अलग से होगी। यहां के लोग छह माह तक नाव तथा छह माह तक पीपे के पुल से आवागमन करते है।