नर्क से मुक्ति का माध्यम है रोजा
अंबेडकरनगर : पैगंबर-ए-इस्लाम हजरत मोहम्मद मुस्तफा सल्ललाहो वा आले ही वसल्लम का इर्शाद है रोजा जहन्नम की सिपर है। जो रोजेदार होंगे उन्हें नर्क से मुक्ति मिलेगी। इस्लाम धर्म का उक्त संबंध में जो आदेश-निर्देश है उसके अनुसार रोजा और नमाज प्रत्येक वयस्क मुसलमान, महिला, पुरुष पर वाजिब है।
शिया जामा मस्जिद मीरानपुर के पेश इमाम मौलाना शुजा हैदर जैदी के अनुसार इस्लामी दृष्टिकोण से रमजान का महीना अति महत्वपूर्ण तो है ही यह बेहद बरकतों वाला भी है। यही कारण है कि इस माह को रमजान-उल-मुबारक कहा गया। जब कोई शख्स रोजे की हालत में होता है तो उसे गुर्बत तथा दूसरों की भूख व प्यास का अहसास गहराई से होता है। यह मआशी एवं सामाजिक ताने-बाने को सुदृढ़ करता है। वहीं रोजा रखने के बेशुमार फायदे हैं। रोजा आत्मा को शुद्ध कर मनुष्य के सोच व विचारों को सही दिशा प्रदान करने के साथ-साथ स्वास्थ्य के लिए भी लाभदायक है। यह पाचन क्रिया को दुरुस्त रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। रोजा आंख, कान, नाक, दिल, दिमाग तथा हाथ, पैर सब का होता है। इसका अर्थ यह है कि रोजेदार को निंदा, घृणा, बुराई, अपशब्दों से परहेज के लिए गलत संगत से विरत रहने तथा हराम लुक्मो से बचना चाहिए। तभी सही मायने में वह रोजेदार होगा।