'अर्ज है' ने बिखेर दी अदब की नर्इ्र खुशबू
जागरण संवाददाता, इलाहाबाद : साहित्य नगरी में रचनाकारों की नई पौध ने अपनी रचनाओं से फिर ध्
जागरण संवाददाता, इलाहाबाद : साहित्य नगरी में रचनाकारों की नई पौध ने अपनी रचनाओं से फिर धमाल मचाया है। पांच नए महिला पुरुष लेखकों ने 'अर्ज है' शीर्षक काव्य संग्रह के माध्यम से शहर की अदबी पहचान को ताजा किया है। पुस्तक ने अदब के माहौल में अदब की नई खुशबू बिखेरी है। शुक्रवार को सिविल लाइंस स्थित एक होटल में इनकी रचनाओं का संग्रह का विमोचन किया गया। इस अवसर पर ¨हदी, उर्दू और अंग्रेजी साहित्य से जुड़े शिक्षकों साहित्यकारों ने विचार रखे।
इलाहाबाद विश्वविद्यालय में उर्दू विभागाध्यक्ष प्रो. अली अहमद फातमी ने कहा कि नई पीढ़ी को अल्फाजों (शब्दों) पर पकड़ होनी चाहिए। रचनाधर्मिता में पाठक की पसंद के साथ साहित्य के स्तर से समझौता नहीं करना चाहिए। इलाहाबाद विश्वविद्यालय में अंग्रेजी विभाग के प्रो. संजय दत्ता रॉय ने कहा कि तीनों भाषाओं के मिलने से साहित्य का संगम होता है। इलाहाबाद विवि में मध्यकालीन इतिहास के प्रो. ललित जोशी ने कहा अदब में जिंदगी, कायनात और हयात सब है। रचनाकारों की नई पौध को अदब के संरक्षण के लिए तहरीक चलानी चाहिए। साहित्यकार यश मालवीय ने कहा कि साहित्य में ठहरने के लिए संघर्ष जरूरी है। उन्होंने नगर के विभिन्न कवियों और शायरों की पंक्तियों के माध्यम से साहित्यिक विरासत को याद किया। 'अर्ज है' शीर्षक काव्य संग्रह को अलीशा फिलिप्स, आस्था सिंह, मोहम्मद यहया, श्लोक रंजन और सहर सिद्दीकी की कविताएं शामिल हैं। इसमें ¨हदी अंग्रेजी एंव उर्दू भाषा की रचनाओं को समाहित किया गया है। कार्यक्रम के अतिथियों ने पुस्तक का विधिवत विमोचन किया। स्वागत ताहिरा काजमी ने किया। अहमद खान ने कार्यक्रम की रूपरेखा प्रस्तुत की। इस अवसर पर प्रो. नीलम यादव, प्रो. अनीता गोपेश, डा. धनंजय चोपड़ा, डा. श्लेष गौतम और संजय खंडूजा आदि रहे।