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गर्मी की छुट्टी में भी हाईकोर्ट में होगी अपराधिक व सिविल मामलों की सुनवाई

मुख्य न्यायाधीश डीबी भोंसले ने गर्मी की छुट्टी में आपराधिक व सिविल मामलों के निस्तारण का खाका तैयार कर लिया है। मुकदमों के निस्तारण की संख्या बढऩे के पूरे आसार हैं।

By Ashish MishraEdited By: Published: Sat, 27 May 2017 09:37 PM (IST)Updated: Sun, 28 May 2017 09:09 AM (IST)
गर्मी की छुट्टी में भी हाईकोर्ट में होगी अपराधिक व सिविल मामलों की सुनवाई
गर्मी की छुट्टी में भी हाईकोर्ट में होगी अपराधिक व सिविल मामलों की सुनवाई

इलाहाबाद (जेएनएन)। गर्मी की छुट्टियों में इलाहाबाद हाईकोर्ट में अवकाश नहीं रहेगा, बल्कि सिविल व आपराधिक मामलों की सुनवाई होगी। हाईकोर्ट में न्यायाधीशों की कमी के बाद भी मुकदमों का बोझ हल्का करने की मुहिम शुरू हो गई है। मुख्य न्यायाधीश डीबी भोंसले ने गर्मी की छुट्टी में आपराधिक व सिविल मामलों के निस्तारण का खाका तैयार कर लिया है। मुकदमों के निस्तारण की संख्या बढऩे के पूरे आसार हैं।

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हाईकोर्ट का लक्ष्य जेल में बंद कैदियों की अपीलों को अधिक से अधिक निर्णीत करने का है। वर्षों से सुनवाई का इंतजार कर रही और अर्थहीन हो चुकी याचिकाओं की भी छंटनी की जा रही है, ताकि सैकड़ों की संख्या में याचिकाओं को सूचीबद्ध करके निपटाया जा सके। अर्थहीन याचिकाओं को छांटने के लिए जिला अदालतों के न्यायिक अधिकारियों को लगाया गया है। बताते हैं कि कुछ एडीजे रैंक के अधिकारी इस अच्छी मुहिम को पलीता लगाने में भी जुटे हैं।


न्यायमूर्ति भारती सप्रू की अदालत में अर्थहीन घोषित याचिकाएं सुनवाई के लिए शुक्रवार को लगाई जाती हैं। चकबंदी विवाद को लेकर दाखिल याचिकाओं को अर्थहीन घोषित करने पर सवाल खड़े हो रहे हैं। एडीजे रैंक के अधिकारियों ने इन्हें अर्थहीन करार दिया है। मुकदमे पुकार और सुनवाई के समय पता चल रहा है कि वह अर्थहीन नहीं है। कोर्ट ने इस पर आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा कि मेरिट पर सुनी जाने वाली याचिकाओं को अर्थहीन मानकर क्यों पेश किया जा रहा है। यह हालात तब हैं जब न्यायिक अधिकारियों को अर्थहीन याचिकाएं छांटने के लिए विशेष भत्ता भी दिया जाता है।

कहा जा रहा है कि न्यायिक अधिकारी लिपिकों के भरोसे हैं इसीलिए न्यायाधीश को टिप्पणी करनी पड़ रही है। कुछ अधिवक्ताओं का कहना है कि अर्थहीन याचिकाओं को छांटने की उद्देश्यहीन प्रक्रिया पर मुख्य न्यायाधीश को दोबारा विचार करना पड़ेगा। हाईकोर्ट में 35 से अधिक ओएसडी आफीशियल काम के लिए तैनात हैं और दूसरी ओर जिला अदालतों में जजों की कमी के कारण मुकदमे नहीं सुने जा रहे हैं। 


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