रमजान---महज भूखे रहने का नाम रोजा नहीं
जासं, इलाहाबाद : रोजे का मतलब है रुकना। यानी तमाम बुराइयों से परहेज करना। रोजा महज दिन भर भूखे रहने
जासं, इलाहाबाद : रोजे का मतलब है रुकना। यानी तमाम बुराइयों से परहेज करना। रोजा महज दिन भर भूखे रहने का नाम नहीं है। किसी को बुरा नहीं बोलना, किसी पर गलत नजर नहीं रखना, गलत नहीं सुनना और कुछ नाजायज न करना। रोजे में दिन भर भूखा प्यासा रहा जाता है, ताकि वासनाओं से परे हटकर रोजेदार के मन में भूख और गरीबों के प्रति हमदर्दी पैदा हो। जो शख्स पूरे ईमान के साथ रोजे रखता है, उसके सारे गुनाह माफ हो जाते हैं। यह पाक महीना खुद पर काबू रखने की नसीहत और सबक देता है।
इस्लाम में अच्छा इंसान बनने के लिए पाच बुनियादी फर्ज निभाना जरूरी है। ये फर्ज हैं- एक अल्लाह को ही परम पूज्य मानना और मोहम्मद साहब को अल्लाह का आखिरी पैगंबर मानना। इसके अलावा बाकी चार हैं- नमाज, रोजा, हज और जकात। अगर कोई शख्स इनमें से किसी एक को भी न माने, तो वह मुसलमान नहीं हो सकता। रोजा भी इनमें से एक है। खुद को खुदा की राह में समर्पित कर देने का प्रतीक पाक महीना माह-ए-रमजान न सिर्फ रहमतों और बरकतों की बारिश का वकफा (अंतराल) है बल्कि समूची मानव जाति को प्रेम, भाईचारे और इंसानियत का संदेश भी देता है। मौजूदा हालात में रमजान का संदेश और भी प्रासंगिक हो गया है। इस पाक महीने में अल्लाह अपने बंदों पर रहमतों का खजाना लुटाता है और भूखे-प्यासे रहकर खुदा की इबादत करने वालों के गुनाह माफ हो जाते हैं। इस माह में दोजख (नरक) के दरवाजे बंद कर दिए जाते हैं और जन्नत की राह खुल जाती है। रोजा अच्छी जिंदगी जीने का प्रशिक्षण है। जिसमें इबादत कर खुदा की राह पर चलने वाले इंसान का जमीर रोजेदार को एक नेक इंसान के व्यक्तित्व के लिए जरूरी हर बात की तरबियत देता है।
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फोटो---
-मौलाना अहमद मकीन
-मस्जिद शाह वसी उल्लाह
रोशनबाग इलाहाबाद।