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10 कोस पर भारी पांच रुपये की सवारी

जासं, इलाहाबाद : दमड़ी न जाए चाहे चमड़ी चली जाए। कुछ ऐसी ही कहावत चरितार्थ होती है यमुना के विभिन्न घा

By JagranEdited By: Published: Wed, 26 Apr 2017 01:00 AM (IST)Updated: Wed, 26 Apr 2017 01:00 AM (IST)
10 कोस पर भारी पांच रुपये की सवारी
10 कोस पर भारी पांच रुपये की सवारी

जासं, इलाहाबाद : दमड़ी न जाए चाहे चमड़ी चली जाए। कुछ ऐसी ही कहावत चरितार्थ होती है यमुना के विभिन्न घाटों पर। दस कोस का सफर लोग बीस मिनट में तय करते हैं, वह भी पांच रुपये में। अंदाजा लगाइए कि टेंपो या किसी अन्य वाहन से तीस किलोमीटर जाने में कम से बीस से तीस रुपये तो लग ही जाएंगे। एक घंटे में सफर तय होगा सो अलग। जी हां, कुछ ऐसी सोच को लेकर ही यमुना के घाटों पर चल रहा है आवागमन। पालपुर यमुना घाट पर नाव हादसे के बाद जागरण की पड़ताल में कई चौकाने वाले खुलासे हो रहे हैं।

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मंगलवार को जागरण टीम घूरपुर के बीकर घाट पर थी। दोपहर के 12 बज रहे थे, बावजूद इसके घाट पर दर्जनों की संख्या में लोग नाव का इंतजार कर रहे थे। इसमें से कुछ लोग मोटरसाइकिल व साइकिल लिए हुए थे। सिर पर टोकरा लादे शीला, आशा और शांति के चेहरे की बेचैनी बता रही थी कि उनको घर पहुंचने की कितनी जल्दी है। पूछने पर बताया कि वे जलालपुर गांव की रहने वाली हैं। रोज खीरा ककड़ी लेकर नाव से इस पार आती हैं। यहां से घूरपुर से लेकर चाकघाट तक बेचती हैं। इसके बाद फिर नाव से अपने घर लौट जाती हैं। कहती हैं कि रोज आने जाने से अब नाव उनके लिए किसी टेंपो से कम नहीं रह गई है। जलालपुर के ही साजन निषाद सब्जी की खेती करते हैं। कहते हैं कि इस पार आकर जसरा, घूरपुर आदि की सब्जी मंडियों में अच्छे पैसे मिल जाते हैं। अगर वह जलालपुर से इलाहाबाद जाएं तो दूरी भी काफी नापनी पड़ेगी। दाम भी कम मिलेंगे। राम नरेश यादव करेली के रहने वाले हैं। वे दूध-दही का व्यापार करते हैं। रोज नाव से इस पार आते हैं ताकि ग्रामीणों से शुद्ध दूध खरीद सकें। वर्षो से यह सिलसिला जारी है। कहते हैं कि उनकी नाव आज तक कभी नहीं डगमगाई। अगर मौसम खराब रहता है तो फिर वह यहां आते ही नहीं। अश्वनी, लवकुश निषाद आदि भी लोगों की हां में हां मिलाते हैं। नाव पर सवारी करने वाले लोग इस बात पर एक राय हैं कि नाव से आवागमन में जहां उनका कीमती समय बचता है वहीं मात्र पांच रुपये में उनका काम चल जाता है। हां अगर मोटरसाइकिल भी साथ होती है तो फिर उसके लिए दस रुपये अलग से देने पड़ते हैं।

बीकर गांव के बालकरन, प्रदीप, राकेश, अनिल बताते हैं कि रोज बदल-बदल कर नावें चलती हैं। यानी नंबर के हिसाब से नावें सवारियों को ढोती हैं। एक बार में नाव कम से कम 35 लोग व चार पांच मोटरसाइकिलें लादकर रवाना होती हैं। नदी पार करने में मात्र 20 मिनट लगते हैं। नदी के दोनों छोरों पर लोग नाव का इंतजार करते रहते हैं। जागरण टीम को पालपुर यमुना घाट पर 70 वर्षीय जाहिद मियां मिले। बताया कि तीस बरस हो गए, रोज नाव से आते जाते हैं। बच्चों के कपड़े बेचते हैं। पालपुर बगिया निवासी जाहिद का नाम जलालपुर, तारापुर आदि गांव में हर शख्स जानता है। तारापुर के अमर सिंह घूरपुर स्थित सेंट मैरी कान्वेंट स्कूल में कार्यरत हैं। रोज अपनी मोटरसाइकिल के साथ ही नाव पर सफर करते हैं। कहते हैं कि अगर सड़क मार्ग से स्कूल आएं तो कम से कम 40 किलोमीटर का सफर लगेगा। 40-50 रुपये अतिरिक्त खर्च होंगे सो अलग। ऐसे में हम लोगों को नाव ही राहत देती है। पैसे के साथ ही समय की काफी बचत होती है। यमुनापार के यमुना घाटों से आवागमन करने वाले लगभग हर शख्स का कुछ ऐसा ही कहना है। नाव से सफर में खतरा है, यह सब मानते हैं, बावजूद इसके नाव की सवारी को मुफीद मानते हैं।

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खुद चलाते हैं चप्पू

इलाहाबाद : यमुना घाटों पर खड़ी नावें लोगों को बैठा तो लेती हैं, पर आगे के सफर के लिए चप्पू सवारियों को ही चलानी पड़ती है। बारी-बारी से लोग चप्पू चलाते रहते हैं और नाविक पैसे वसूलने में लगे रहते हैं। कम ही नाविक हैं जो चप्पू खुद चलाते हैं। लोगों की मानें तो इसे उनकी मजबूरी भी कहा जा सकता है। अब ज्यादा सहूलियत चाहिए तो फिर कुछ कष्ट तो सहने ही होंगे।


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