खुद पानी मांग रहीं नदियां
संजय कुशवाहा, इलाहाबाद : नदियों को जीवनदायिनी कहा जाता है। किंतु, जब उन्हीं के अस्तित्व पर संकट खड़ा
संजय कुशवाहा, इलाहाबाद : नदियों को जीवनदायिनी कहा जाता है। किंतु, जब उन्हीं के अस्तित्व पर संकट खड़ा हो जाए तो फिर जिंदगी पर खतरा बढ़ना तय है। मंडल में कई ऐसी नदियां हैं जो या तो सूख चुकी हैं या फिर सूखने के कगार पर हैं। दूसरों को पानी देने वाली नदियां आज खुद पानी मांग रही हैं। इसके पीछे सरकारी उपेक्षा तो है ही, आमजन भी कम जिम्मेदार नहीं हैं। गंगा जैसी नदी को बचाने की सभी कोशिश निरर्थक साबित हो रही है। हालात यह हैं कि कई छोटी नदियां नाला बन चुकी हैं। तालाबों की स्थिति भी खराब है। पर्यावरण की क्षति से पानी पाताल में पहुंच गया है। गर्मी आते ही पानी के लिए जो हाहाकार मचता है, उसके पीछे कहीं न कहीं लोगों द्वारा प्रकृति के साथ की जा रही छेड़छाड़ भी बड़ी वजह है।
बात गंगा से शुरू करें तो प्रयाग में गंगा की जो दशा है वह किसी से छिपी नहीं है। फाफामऊ से ही गंगा की रेत बढ़ने लगती है। संगम पर यमुना से मिलने के बाद गंगा नजर आती हैं, लेकिन इसके आगे बढ़ते ही फिर पानी हरा हो जाता है। गंगा को लेकर तमाम योजनाएं चलाई जा रही हैं, बावजूद उसकी दशा सुधरने का नाम नहीं ले रही है। अब तो यमुना पर भी संकट मंडराने लगा है। संगम के आसपास ही यमुना में बड़ी-बड़ी रेत हतप्रभ करती है। सदाबहार यमुना में अचानक ये रेत के टीले क्यों नजर आने लगे, इसके बारे में सोचने की फुरसत किसी को नहीं है। छोटी नदियां तो विलुप्त सी हो गई हैं। शंकरगढ़ लोनी नदी का अस्तित्व मिट चला है। यह नदी बेड़वा पहाड़ से निकलकर टोंस नदी में मिलती थी। कोरांव तहसील में बेलन नदी 90 फीसद सूख गई। यहीं देवघाट से निकलने वाली सेवटी नदी नाले के रूप में तब्दील हो गई है। यहीं लपरी नदी भी अंतिम सांसें गिन रही है।
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पाताल में जा रहा पानी
इलाहाबाद : जिले में जलस्तर तेजी से नीचे जा रहा है। स्थिति गंभीर है, पर इससे निपटने की सारी कवायदें कागजों पर ही चल रही हैं। आंकड़ों पर विश्वास करें तो जिले में हर साल 70 से 80 सेंटीमीटर की गति से पानी पाताल में जा रहा है। आने वाले समय में यह संकट का कारण बन सकता है। दरअसल लोगों को लगता है कि जमीन के नीचे असीमित भूगर्भ जल है। इसलिए जो जहां चाहे बो¨रग कराकर पानी खींच रहा है। कोई पीने के लिए, कोई खेती के लिए तो कई उद्योग के लिए पानी निकाल रहा है। ऐसे में अगर एक साल बारिश नहीं होती तो फिर हर तरफ त्राहि त्राहि मच जाती है। गर्मी आते ही पाठा इलाके में कुएं सूख जाते हैं। हैंडपंप कीचड़ उगलने लगते हैं। तालाब-पोखरों में सिर्फ धूल ही नजर आती है। हर साल स्थिति बिगड़ती जा रही है।
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कैसे बचेगा पानी
- कृषि और शहरों में पानी का दुरुपयोग कम हो।
- सिंचाई के लिए तालाब, नहर और नदी के जल का उपयोग हो।
- जहां वाटर लेवल डाउन है वहां पर कम पानी वाली फसलें लगाएं।
- सिंचाई की ऐसी विधि अपनाएं कि कम पानी खर्च हो।
- वर्षा जल का सिंचाई में अधिक से उपयोग करें।
- बारिश के पानी को खेत, तालाब, कुएं आदि रोके। उसे नदी में बहने न दें। जिससे भूगर्भ जल रिचार्ज हो।
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पेड़ बनने से पहले ही सूख रहे पौधे
इलाहाबाद : ग्लोबल वार्मिग का असर न सिर्फ नदियों पर बल्कि पेड़ पौधों पर भी देखने को मिल रहा है। दशकों पहले लगाए गए पेड़ तो आज भी बिल्कुल वैसे ही खड़े हैं, पर इस समय तो पौधे रोपे जाते हैं, उनको बचाना दुरुह हो गया है। तेज धूप से पौधे झुलस जा रहे हैं। बीते दो सालों में शहरीकरण के कारण सड़कों के किनारे लगे हजारों पेड़ काटे जा चुके हैं। पर्यावरण की चिंता किसी को नहीं है। वन विभाग द्वारा पिछले साल पौधरोपण अभियान तो चलाया गया, पर पौधे रोपकर छोड़ दिए गए। उन्हें बचाने की चिंता किसी ने नहीं की। नतीजा इसमें से ज्यादा पौधे दम तोड़ चुके हैं।
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क्यों मनाते हैं विश्व पृथ्वी दिवस
इलाहाबाद : पृथ्वी के संरक्षण के लिए विश्व भर में जागरूकता फैलाने को यह दिवस हर वर्ष 22 फरवरी को मनाया जाता है। 1970 से इसकी शुरुआत हुई है। समुद्र तल बढ़ रहा है। प्राकृतिक आपदाओं की संख्या बढ़ रही है। जीव जंतु विलुप्त हो रहे हैं। बर्फ से ढके ध्रुव व ग्लेशियर पिघल रहे हैं। जल, जंगल और जमीन सिकुड़ते जा रहे हैं। ये सब जलवायु परिवर्तन के चेहरे हैं। इन सब चेहरों की पहचान व उसके अनुसार कदम उठाने आदि को लेकर भी चर्चा का विषय बनता है पृथ्वी दिवस।