अमूल्य निधि हैं लोक कलाएं : डॉ. श्लेष
जासं, इलाहाबाद : भारतीय संस्कृति का आधार हैं लोक कलाएं। यह मानव जीवन की अमूल्य निधि हैं जिसको संरक्ष
जासं, इलाहाबाद : भारतीय संस्कृति का आधार हैं लोक कलाएं। यह मानव जीवन की अमूल्य निधि हैं जिसको संरक्षित करने की जरूरत है। लोकविद् डॉ. श्लेष गौतम ने ये बातें कहीं। वह मंगलवार को भारत लोकरंग महोत्सव के अंतिम दिन बालमित्र विद्यालय में आयोजित संगोष्ठी में बोल रहे थे। 'लोक कलाएं राष्ट्र की धरोहर' विषय पर कहा कि भावी पीढ़ी को लोककला से जोड़ने की जरूरत है।
लोक नाट्यविद् अतुल यदुवंशी ने कहा कि लोक कलाएं हमारे पूर्वजों की अनुपम देन हैं। यही हमारे जीवन का आधार है, जरूरत है उसके मर्म को समझकर अपनाने की। साहित्यविद् जयकृष्ण तुषार ने कहा कि अपनी माटी की सोंधी सुगंध लोक कलाओं में आज भी विद्यमान है। परंतु उसके महत्व को आज की पीढ़ी समझ नहीं पा रही है। संयोजक धीरज अग्रवाल ने लोककला को मानवता व समाजिकता का आधार बताया। इसके पहले कलाकारों ने एक से बढ़कर एक सांस्कृतिक प्रस्तुति दी। लालबहादुर रागी को लोककला रत्न, हीरालाल धूरिया व सोमईराम विश्वकर्मा को फोक आर्ट मास्टर अवार्ड से सम्मानित किया गया।