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सावधान! आतिशबाजी ले सकती है जान

जासं, इलाहाबाद : दीवाली पर पटाखों का अपना अलग क्रेज है, लेकिन आतिशबाजी की धुन में हम इनसे होने वाले

By Edited By: Published: Mon, 24 Oct 2016 06:46 PM (IST)Updated: Mon, 24 Oct 2016 06:46 PM (IST)
सावधान! आतिशबाजी ले सकती है जान

जासं, इलाहाबाद : दीवाली पर पटाखों का अपना अलग क्रेज है, लेकिन आतिशबाजी की धुन में हम इनसे होने वाले दुष्परिणामों के बारे में सोचना भूल जाते हैं। चाइनीज उत्पादों के विरोध के चलते इस बार देसी पटाखे बाजार में छाए हुए हैं जो बच्चों के लिए तो बेहद खतरनाक हो सकते हैं। ब्राडेड पटाखों की किल्लत के कारण बाजार में इनकी मांग तेजी से बढ़ी है।

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वैसे तो इलाहाबाद में ज्यादातर पटाखे तमिलनाडु के शिवाकाशी से आते हैं, लेकिन इस बार चाइनीज उत्पादों के विरोध के चलते इस पर असर पड़ा है। ब्रांडेड पटाखों की आमद कम होने से पड़ोसी जिलों से देसी पटाखे बाजार में पहुंच रहे हैं। नतीजा बाजार में अवैध रूप से बनाए जाने वाले पटाखों की भरमार है, जिनमें सुरक्षा मानकों का कतई पालन नहीं किया जाता है। एक अनुमान के मुताबिक इलाहाबाद में दीपावली पर हर साल आतिशबाजी का पाच करोड़ रुपये से अधिक का थोक कारोबार होता है। अगर फुटकर और अनब्राडेड को भी इसमें शामिल करें तो यह आंकड़ा बढ़ जाता है। दीवाली सिर पर है, सो बाजार में देसी पटाखे खपाए जा रहे हैं। प्रशासन के लाख दावों के बावजूद शहर के आसपास के इलाकों में चोरी छिपे पटाखों का कारोबार चल रहा है। मऊआइमा में चार साल पहले हुए विस्फोट में 14 लोगों की जान चली गई थी जिसके बाद वहां के सारे लाइसेंस निरस्त कर दिए गए थे। प्रशासन की मानें तो मऊआइमा में अब पटाखों का कारोबार बंद है, पर हकीकत इससे परे है। बताते हैं कि मऊआइमा में अब पटाखे बाहर से मंगाकर चोरी छिपे बेचा जा रहा है। इलाहाबाद में पड़ोसी जिलों प्रतापगढ़, कौशांबी और सुल्तानपुर से भी पटाखे पहुंच रहे हैं। पटाखों के इस अवैध कारोबार में प्रदूषण नियंत्रण आयोग के मानकों का कतई पालन नहीं किया जाता। ऐसे में ये पटाखे देसी बम से कम नहीं होते। इन आशंकाओं के मद्देनजर इस दीपावली आतिशबाजी को लेकर अपने उत्साह पर काबू पाने की आवश्यकता है। कहीं ऐसा न हो कि सुतली बम फोड़ते वक्त तेज धमाके में शरीर को ही नुकसान पहुंच जाए। जिले के लोगों को वह घटना भी याद होगी जब 2007 में झूंसी के ईसीपुर में पटाखा बनाते समय एक महिला और उसके दो मासूम बच्चों की मौत हो गई थी। इतना ही नहीं तमिलनाडु शिवाकाशी के मुदालीपंट्टी की पटाखा फैक्ट्री में 5 सितंबर 2012 में विस्फोट में भी 52 लोगों की मौत हुई थी। ये सारी घटनाएं यह बताती हैं कि पटाखों का वार कितना खतरनाक होता है। कहा जाता है कि शिवाकाशी की जिस पटाखा फैक्ट्री में विस्फोट हुआ था, वह ब्रांडेड कंपनियों के पटाखे बनाती थी। बाद में जांच हुई तो वहां रासायनिक सामग्री के मिश्रण में गड़बड़ी पाई गई थी। ब्राडेड कंपनियों के पटाखों का यह हाल है तो ये देसी पटाखे क्या क्या हाल करेंगे, आप समझ सकते हैं। शहर के पटाखा व्यवसायी गोपालदास की मानें तो इस बार बाजार में चाइनीज पटाखों की आमद कम हुई है। इसका फायदा देसी पटाखा व्यवसायी उठाएंगे।


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