बीपीसीएल को संजीवनी, दौड़ी खुशी की लहर
जासं, इलाहाबाद : पिछले तीन साल से आर्थिक तंगी से लड़ रही नैनी स्थित भारत पंप्स एंड कंप्रेसर लिमिटेड (
जासं, इलाहाबाद : पिछले तीन साल से आर्थिक तंगी से लड़ रही नैनी स्थित भारत पंप्स एंड कंप्रेसर लिमिटेड (बीपीसीएल) को संजीवनी मिल गई है। केंद्र सरकार ने बुधवार को कैबिनेट बैठक में बीपीसीएल के लिए 111.5 करोड़ रुपये के वित्तीय पैकेज को मंजूरी दे दी। यह खबर जैसे ही नैनी तक पहुंची तो बीपीसीएल के साढ़े चार सौ कर्मचारियों के चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ पड़ी। तीन साल में रिटायर्ड हो चुके लगभग 200 कर्मचारियों के जीवन में उम्मीद की नई लहर दौड़ गई। अब उन्हें अपना बकाया भुगतान मिल जाएगा।
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तीन साल पहले भेजा था प्रस्ताव
बीपीसीएल द्वारा तीन साल पहले उद्योग मंत्रालय को वित्तीय पैकेज देने के लिए प्रस्ताव भेजा गया था। उसमें उल्लेख था कि धन अभाव के कारण कंपनी रॉ मटीरियल नहीं खरीद पाती है। अगर केंद्र सरकार की नजर-ए-इनायत हो जाए तो बीपीसीएल को संजीवनी मिल जाए। इम्प्लाइज यूनियन बीपीसीएल के जनरल सेक्रेटरी आरएलडी दुबे बताते हैं कि बीपीसीएल को वित्तीय पैकेज दिलाने में पेट्रोलियम सचिव केडी त्रिपाठी ने अहम योगदान दिया। संगठन और कंपनी लगातार बीपीसीएल के लिए वित्तीय पैकेज की मांग कर रही थी, मगर केडी त्रिपाठी के हस्तक्षेप के बाद डगर सरल हो पाई। उनका संगम नगरी से नाता है। उनके भाई यहां पर डॉक्टर हैं। इसके कारण भी नैनी को लेकर उनका अलग लगाव है।
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सैकड़ों घरों में खुशी का माहौल
बीपीसीएल कंपनी में वर्तमान में साढ़े चार सौ कर्मचारी कार्यरत हैं। पिछले तीन साल में लगभग 200 कर्मचारी सेवानिवृत्त हो चुके हैं। केंद्र सरकार द्वारा वित्तीय पैकेज मंजूरी होने के बाद घरों में खुशी की लहर दौड़ पड़ी। सेवानिवृत्त कर्मचारियों के घर में अधिक असर दिखाई दिया। क्योंकि तीन साल से इनकी भविष्य निधि और ग्रेच्युटी आदि का भुगतान नहीं हो पाया है। कंपनी की आर्थिक तंगी के कारण कार्यरत कर्मचारियों को भी जब-तब परेशानी उठानी पड़ती है।
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2004 में मिला मिनी रत्न का तमगा
वर्ष 1970 में नैनी में निर्माण के लिए एक आयात प्रतिस्थापन इकाई के रूप में बीपीसीएल की स्थापना की गई। बीपीसीएल ओएनजीसी के लिए सबसे ज्यादा उत्पाद तैयार करता है। 1999 से लेकर 2006 तक बीपीसीएल का स्वर्णिम काल था। 2004 में बीपीसीएल को मिनी रत्न का तमगा मिला। कंपनी के तत्कालीन मैनेजर अभय कुमार जैन ने इसको बुलंदियों पर पहुंचाया। उनके सात साल के कार्यकाल में कंपनी ने 2003 से लेकर 2005 तक तीन वर्ष में डेढ़ करोड़ से अधिक का मुनाफा भारत सरकार को दिया था। उनके जाने के बाद से कंपनी धीरे-धीरे गर्त में जाने लग गई थी।
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धन अभाव के कारण रोड़े
बीपीसीएल को नियमित रूप से वर्क ऑडर मिलते रहते हैं। समस्या यह है कि कंपनी के पास रॉ मेटेरियल (पंप्स एंड कंप्रैसर के पाटर्स) खरीदने के लिए रुपये नहीं हैं। जिसके अभाव में कंपनी को वर्क ऑडर मिलने के बाद वह कंपनी को मटीरियल उपलब्ध नहीं करा पाती है। इसके लिए वित्तीय पैकेज की मांग चल रही थी।