बैंकों के विलय से अर्थव्यवस्था में क्रांति
रमेश यादव, इलाहाबाद : बैंकों का विलय निश्चित तौर पर हमारी अर्थव्यवस्था के लिए नई क्रांति होगा। आशंका
रमेश यादव, इलाहाबाद : बैंकों का विलय निश्चित तौर पर हमारी अर्थव्यवस्था के लिए नई क्रांति होगा। आशंकाएं अपनी जगह हैं, लेकिन नए दौर की चुनौतियों में ऐसी पहल होनी चाहिए। कुछ यही लब्बोलुआब था सोमवार को दैनिक जागरण कार्यालय में हुई अकादमिक चर्चा का। इस बार एजेंडा था-क्या बैंकों का विलय उन्हें बेहतर बनाएगा? जाने-माने कर एवं वित्त सलाहकार तथा जीएसटी एडवायजरी बोर्ड के सदस्य डॉ. पवन जायसवाल ने बतौर विशेषज्ञ वक्ता संपादकीय सहयोगियों की जिज्ञासाएं शांत की। आजादी के पहले की बैंकिंग, फिर 1969 में बैंकों के राष्ट्रीयकरण और 1991 में शुरू आर्थिक उदारीकरण से आए बदलाव का जिक्र भी चर्चा में आया।
कई मोर्चो को साधने की तैयारी
आज बैंकों में अलग-अलग ब्याज दर है। बैंक कर्मी जी-तोड़ मेहनत करते हैं, मगर वेतनमान अलग अलग रहता है, जब विलय होगा तब ऐसी ही तमाम विसंगतियां खत्म होंगी। यह विचार आज का नहीं, 2007 से चल रहा है। केंद्र सरकार चाहती है कि 19 राष्ट्रीयकृत बैंकों का विलय हो तथा चार से छह बैंक ही रहें। बैंक कर्मियों का हित तो होगा ही आम लोगों को भी उन्नत सुविधाएं मिलेंगी। बात आगे बढ़ भी गई है। भारतीय स्टेट बैंक में उसके पांच सहयोगी बैंकों का विलय कर दिया गया है।
प्रतिस्पर्धा तो रहेगी ही
बैंकों का विलय होने पर सरकारी बैंकों में चल रही प्रतिस्पर्धा भले ही खत्म हो जाए, लेकिन प्राइवेट बैंक तो होंगे ही। जहां सरकारी बैंक ग्राहकों को उत्तम सेवाएं देने में नाकाम होंगे, वहां प्राइवेट बैंक विकल्प होंगे। जहां प्राइवेट बैंकों की सेवाएं खराब होंगी, वहां सरकारी बैंक मैदान मार लेंगे। अंतत: फायदा ग्राहकों को ही मिलेगा। बैंक कर्मियों में यह चिंता है कि उनकी सुविधाओं में कमी आएगी। हो सकता है कि अयोग्य कर्मियों की छंटनी हो, लेकिन योग्य लोगों को आगे बढ़ने का मौका मिलेगा।
लोकपाल का बढ़ेगा दायित्व
एक समस्या यह सामने आ सकती है कि विलय के बाद एकाधिकार की भावना बढे़, तब बैंकिंग लोकपाल (ओम्बड्समैन) का दायित्व बढ़ जाएगा। बैंकों का प्रयास है कि पेपर लेस बैंकिंग हो। ई-लॉबी का प्रचलन हो। इसके लिए पॉवर का कंट्रोल एक जगह जरूरी है, तभी सभी सेवाएं सुचारू होंगी। साइबर क्राइम की चुनौती भी बढ़ेगी, इससे निपटने की तैयारियां चल रही हैं। समय के साथ इसका निदान कर लिया जाएगा। केंद्र सरकार चाहती है कि बैंकों का विलय करके ऐसा ढांचा तैयार किया जाए, जिसमें एनपीए की गुंजाइश कम हो।
इनसेट--अतिथि का परिचय
इलाहाबाद। मूल रूप से बलिया के बिल्थरारोड निवासी डॉ. पवन जायसवाल की इंटरमीडिएट तक की शिक्षा आजमगढ़ में हुई। वर्ष 1992 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से कामर्स में स्नातक की डिग्री ली। प्रोजेक्ट एवं करारोपण पर डॉक्टरेट किया। पुंडुचेरी विश्वविद्यालय से बिजनेस मैनेजमेंट एवं कानपुर विश्वविद्यालय में कामर्स में पीजी किया। स्वर्ण पदक विजेता डा. जायसवाल इंस्टीट्यूट ऑफ वैल्युअर्स, इंस्टीट्यूट ऑफ कास्ट एकाउन्टेंट्स ऑफ इंडिया, ऑल इंडिया मैनेजमेंट एसोसिएशन के फेलो मेंबर हैं। कर एवं वित्त बैंकिंग पर किताबें भी लिखीं हैं। वैट व जीएसटी पर भी सरकार को उन्होंने अपने सुझाव दिए हैं।