गौरैया की जिंदगी बचा रही जल पुलिस
ताराचंद्र गुप्ता, इलाहाबाद : दुनिया भर में ख्यात संगम का अन्न क्षेत्र सिर्फ माघ मेले अथवा कुंभ -अर्ध
ताराचंद्र गुप्ता, इलाहाबाद : दुनिया भर में ख्यात संगम का अन्न क्षेत्र सिर्फ माघ मेले अथवा कुंभ -अर्धकुंभ तक ही नहीं चलता। साल भर यहां बेजुबान और लुप्तप्राय गौरैया भी दाना -पानी पाती हैं। इन दिनों जबकि बाढ़ के पानी ने अन्न क्षेत्र को ही लील लिया है तो कहां जाएं यह बेचारी? ऐसे में उनके लिए दाने की चिंता जलपुलिस कर रही है। खतरनाक लहरों के बीच गौरेया की जिंदगी बचाने की यह जद्दोजेहद अनुकरणीय है और हमारे समाज का सकारात्मक पक्ष भी।
पखवारे भर से संगम खतरनाक हो चला है। बंधवा के बड़े हनुमान भी लगातार अथाह जलराशि के बीच हैं। संगम में चारों तरफ सिर्फ खतरनाक लहरें ही नजर आती हैं दूर दूर तक। अन्न क्षेत्र में मौजूद कुछ पेड़ों पर रहती हैं विलुप्त प्रजाति वाली गौरैया। पेड़ की पानी से बची डालें हीं इनका ठिकाना हैं। उफनाती गंगा-यमुना की धारा के बीच चार से पांच किमी का सफर तय कर उन्हें दाना पहुंचाना मुश्किल भरा है, फिर भी उन्हें बचाने की हर संभव कोशिश की जा रही है। जल पुलिस प्रभारी कड़ेदीन यादव के निर्देशन में रोजाना सुबह शाम प्रशिक्षु तैराक विनोद सिंह, मुनीष सिंह, आशीष व बलवंत इन बेजुबान गौरैयों को दाना पहुंचाते हैं। पिछले करीब आठ दिनों से लगातार स्टीमर अन्न क्षेत्र पहुंच रही है। सिर्फ गौरैया ही नहीं, पेड़ों पर मौजूद कौए और छाजन पर बैठे श्वानों का भी पेट भरा जा रहा है। जल पुलिस के जवान और गंगा -यमुना की उग्र लहरों के शांत होने की दुआ कर रहे हैं ताकि धरा पर सलामत रहें संगम की यह गौरैया। किसी ने कहा भी है- राम की चिड़िया राम का पेट, चुग ले दाना भर-भर पेट। गौरैया जब दाना पाती हैं तो निहाल हो जाती हैं। जवानों के चेहरों पर खुशी तैर जाती है तब।