'बाजीराव मस्तानी' सूट, 'पी कट' कुर्ती की धूम
जासं, इलाहाबाद : माह-ए-मुकद्दस रमजान का तीसरा अशरा शुरू हो गया हे। ऐसे में लोगों ने ईद की तैयारियां
जासं, इलाहाबाद : माह-ए-मुकद्दस रमजान का तीसरा अशरा शुरू हो गया हे। ऐसे में लोगों ने ईद की तैयारियां तेज कर दी हैं। खानपान की चीजों के साथ ही कपड़ों की खरीदारी बढ़ गई है। बाजारों में देर रात तक भीड़ उमड़ रही है। ऐसे में युवतियां और महिलाएं अपने लिए नए डिजाइन के सूट और कुर्तियां पसंद कर रही हैं।
चौक में रेडीमेड कपड़े बेचने वाले अंकित टंडन बताते हैं कि ईद के कारण कपड़ों की बिक्री पांच गुना बढ़ गई है। युवतियां पी-कट और प्लाजो सेट कुर्ती इस बार बहुत पसंद कर रही हैं। खास डिजाइन और खूबसूरत बनावट की वजह से यह युवतियों को खूब भा रहा है। इसके अलावा ग्राउन, फरनट ओपेन की भी अच्छी मांग है। उन्होंने बताया कि पांच सौ रुपये लेकर एक हजार रुपये की कुर्ती की जबर्दस्त बिक्री है। रोशन बाग में सालों से रेडीमेड कपड़े बेच रहे असलम बताते हैं कि इस बार बाजीराव मस्तानी सूट ज्यादा पसंद किया जा रहा है। युवतियां की यह खास पसंद है। इसके अलावा प्लाजो, शरारा की भी अच्छी बिक्री है। डेढ़ हजार से लेकर तीन हजार रुपये के सूट ज्यादा बिक रहे हैं।
मौलाना कॉलम के लिए ..
रमजान मुबारक मोमिनों के लिए सबसे खास है। इस महीने में बंदा अल्लाह के नजदीक पहुंच जाता है। रोजा, नमाज, तिलावत के जरिए हर कोई अल्लाह से अपनी दुआ कुबूल करा सकता है। पूरे साल हुई गलतियों की माफी हासिल कर सकता है। यह महीना गरीबों, बेसहारों और यतीमों की मदद का है।
कुरआन में अल्लाह ने फरमाया है कि मोमिनों तुम पर रमजान के रोजे फर्ज किए गए। तुम इबादत करो, उसका सिला अल्लाह देगा। हर परेशानी, मुसीबत से निजात मिलेगी। हदीस है कि रमजान में शैतानों को कैद कर दिया जाता है ताकि आप बुराइयों से दूर रहें, फरिश्ते आपकी हिफाजत करते हैं। इसी महीने में कुरआन पाक नाजिल हुई। इन्हीं तीस दिनों में हजार रातों से अफजल शबे कद्र की रात है। यह कीमती रात नसीब वालों को ही हासिल होती है, सच्चे दिन से पूरी रात इबादत कर अल्लाह से मांगी जाने वाली हर दुआ पूरी होती है।
मौलाना मुर्शीद, पेश इमाम मदीना मस्जिद, जानसेनगंज
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मेरा पहला रोजा
उन दिनों मेरी उम्र तेरह साल थी। रमजान शुरू हुआ तो सभी लोग रोजा रखने लगे। रमजान की अजमत ही ऐसी है कि मुझे भी रोजा रखने की ख्वाहिश होने लगी। मैने भी तैयारी कर ली। तब हम मिन्हाजपुर में रहते थे। अम्मी अकीजुन से मैने कहा तो उन्होंने सहरी का इंतजाम किया। पिता महबूब अहमद समदानी ने भी हौसला बढ़ाया। रोजा कुशाई बहुत धूम से तो नहीं हुई लेकिन घर में इफ्तार का इंतजाम हुआ। मेहमान आए और मेरे लिए गिफ्ट भी लाग। पहले रोजे की कैफियत को कभी नहीं भूल सकता। हां तब से मै पूरे रोजे रख रहा हूं। अल्लाह ने चाहा तो आगे भी पूरे रोजे रखूंगा। रोजा हमे सब्र करना सिखाता है।
आसिफ समदानी, बिजनेसमैन
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मेरी उम्र दस बरस रही होगी। 1962 में रमजान मार्च में पड़ा था। उस वक्त दादा-दादी, नाना सभी रोजा रखते थे। सभी की ख्वाहिश थी कि मेरी रोजा कुशाई जल्द हो जाए। 22 रमजान को मेरा पहला रोजा रखने की बात तय हुई। सहरी में सूतफेनी, दूध और अन्य चीजें खाई। अगले दिन रोजा रख मै स्कूल जाना नहीं भूला। शाम चार बजे विद्यालय से वापस लौटा तो प्यास से हाल बेहाल था। घर में मेहमान आ रहे थे। दारी-चादर बिछाकर इफ्तार का इंतजाम हुआ। मुझे बीच में बैठाकर दादा सैयद अख्तर हुसैन ने दुआ पढ़ी। इफ्तार के बाद खूब तोहफे और रुपये मिले।
सै.अजादार हुसैन, अध्यक्ष अध्यक्ष दरगाह मौला अली, दरियाबाद
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तब मेरी उम्र नौ साल थी। दोस्तों और घरवालों को रोजा रखते देख मुझे भी चाहत होने लगी। मैने मां सालिहा फाखरी से कहा तो उन्होंने रोजा रखने की तैयारी कर दी। बात पिता जाहिद फाखरी तक पहुंची तो रोजा कुशाई का इंतजाम हुआ। घर में बहुत सारे मेहमान आए। मेरा पहला रोजा था इसलिए थोड़ी दिक्कत महसूस हुई। हालांकि हमारा पूरा खानदान रोजा नमाज वाला है। ऐसे में दिन कैसे गुजरा पता ही नहीं चला। तब से मै पूरा रोजा रख रहा हूं।
जज्बी फाखरी, पीरजादा दरगाह दायराशाह अजमल
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इफ्तार - मंगलवार
सुन्नी - 6.59
शिया - 7.12
सहरी - बुधवार
सुन्नी - 3.30
शिया - 3.36