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अमौसा का मेला, पहुंच रहा रेला

जागरण संवाददाता, इलाहाबाद : मोक्ष की आस। जन्म-जन्मांतर के पापों से मुक्ति। भक्ति का भाव लिए श्रद्धाल

By Edited By: Published: Sun, 07 Feb 2016 01:44 AM (IST)Updated: Sun, 07 Feb 2016 01:44 AM (IST)
अमौसा का मेला, पहुंच रहा रेला

जागरण संवाददाता, इलाहाबाद : मोक्ष की आस। जन्म-जन्मांतर के पापों से मुक्ति। भक्ति का भाव लिए श्रद्धालुओं का रेला तीर्थराज प्रयाग में दस्तक दे रहा है। नर-नारी व बच्चे पतित पावनी गंगा, श्यामल यमुना व अदृश्य सरस्वती के निर्मल जल में गोता लगाने को आतुर हैं। सबको इंतजार है मौनी अमावस्या की पुण्यबेला का। इस बार सोमवार को अमावस्या होने से मौनी अमावस्या का महत्व काफी बढ़ गया है। ज्योतिर्विदों का दावा है कि सोमवारी अमावस्या पर ग्रह-नक्षत्रों की जुगलबंदी के बीच श्रद्धालुओं का संगम में डुबकी लगाना सौभाग्यदायक होगा। सच्चे हृदय से संगम में डुबकी लगाने वाले मानव के लिए मोक्ष का द्वार भी खुल जाता है।

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वयोवृद्ध ज्योतिर्विद डॉ. जेएन मिश्र का कहना है सोमवार को मकर राशि में सूर्य व चंद्रमा का संचरण होगा। सूर्य आत्मा व चंद्रमा मन के कारक होते हैं, इसके दो ग्रहीय योग बनने से सोमवती अमावस्या का महत्व बढ़ गया है। वैवर्त पुराण व निर्णय सिंधु के अनुसार ऐसे योग में गंगा-यमुना में स्नान करके दान करने से एक हजार गौदान व एक हजार यज्ञ का फल प्राप्त होता है।

आचार्य देवेंद्र प्रसाद त्रिपाठी बताते हैं कि रविवार की रात 9.47 बजे से अमावस्या तिथि लग जाएगी। जो सोमवार की रात 8.36 बजे तक रहेगी। श्रवण नक्षत्र व्यतिपाल योग व नाग करण रहेगा। अमावस्या पितृ व यम तिथि मानी जाती है, सोमवार को शिव का योग बनने से यमराज भी धर्मराज की भांति सहयोग करेंगे।

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पितरों को करें स्मरण

परिवर्तन मानव विकास संस्थान के निदेशक डॉ. बिपिन पांडेय के अनुसार मौनी अमावस्या पर स्नान के साथ पितरों के श्रद्धा व तर्पण का विधान है। संगम, गंगा, यमुना, सरोवर या घर में स्नान के बाद पितरों को तर्पण, श्राद्ध व जलांजलि देने से वह उन्हें सीधे प्राप्त होता है। स्नान के बाद पितरों का नाम ले तीन, पांच या सात बार जलांजलि देनी चाहिए। संगम में स्नान करने वाले श्रद्धालु को एक, तीन, पांच, सात व नौ डुबकी लगानी चाहिए। साथ ही मन ही मन 'ओम गणपतये नम:, ओम सूर्याय नम: व ओम पितरेभ्यो नम:' का जाप करना चाहिए। धर्म सिंधु के अनुसार अगर किसी के घर का कोई व्यक्ति शारीरिक अक्षमता के कारण स्नान करने नहीं आ पाया है तो उनका नाम लेकर दूसरा सदस्य डुबकी लगाता है तो उन्हें पुण्य की प्राप्ति होगी।

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क्या है मौनी अमावस्या

भारतीय विद्या भवन में ज्योतिष विभाग के प्राचार्य आचार्य त्रिवेणी प्रसाद त्रिपाठी कहते हैं कि माघ मास की प्रथम अमावस्या को मौनी अमावस्या कहा जाता है। इस दिन सूर्य तथा चंद्रमा गोचरवश मकर राशि में आते हैं। युग प्रवर्तक मनु ऋषि का जन्म भी इसी दिन माना गया है। शास्त्रों के अनुसार ब्रह्माजी ने मनु महाराज व महारानी शतरूपा को प्रकट कर सृष्टि की शुरुआत की थी। आचार्य त्रिपाठी के अनुसार मनुष्य के अंदर तीन मैल कर्म, भाव तथा अज्ञान का होता है। गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती की त्रिवेणी में स्नान करने से तीनों ही धुल जाते हैं।

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स्नान के बाद करें दान

संगम में स्नान के बाद हर व्यक्ति को अपनी क्षमता के अनुसार दान अवश्य करना चाहिए। मौनी अमावस्या के दिन तिल, कंबल, ऊनी वस्त्र, स्वर्ण, गोदान व फल का दान करने से प्रगति का मार्ग खुलने के साथ अंत:शक्ति प्रबल होती है।


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