राम मंदिर को सत्ता की सीढ़ी न बनाएं : स्वरूपानंद
जागरण संवाददाता, इलाहाबाद : त्रिवेणी तट पर बैठी 'सनातन धर्म संसद' में धर्माचार्यो ने धर्म, अर्थ, राज
जागरण संवाददाता, इलाहाबाद : त्रिवेणी तट पर बैठी 'सनातन धर्म संसद' में धर्माचार्यो ने धर्म, अर्थ, राजनीति व सामाजिक चुनौतियों पर मंथन किया। इन सबका केंद्र था श्रीराम जन्मभूमि में मंदिर निर्माण व गंगा की अविरल धारा। शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के माघ मेला क्षेत्र स्थित शिविर में शनिवार को आयोजित धर्म संसद में हर धर्माचार्य ने गंगा की धारा अविरल करने पर जोर दिया। शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने अयोध्या में श्रीराम मंदिर को लेकर हो रही राजनीति पर नाराजगी व्यक्त की। कहा कि राम मंदिर को सत्ता की सीढ़ी न बनाए जाए। बल्कि सब मिलकर उसका निर्माण करें। कहा कि जब हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कह दिया है कि अयोध्या में कभी बाबर नहीं आया था, न वहां कभी मस्जिद थी, तब विवाद कैसा। सबको अयोध्या जाकर श्रीराम जन्मभूमि का दर्शन करने का निर्देश दिया।
उन्होंने कहा कि अर्थ अच्छी चीज है, परंतु वह न्यायोचित रीति से अर्जित होनी चाहिए। अपनी धरोहर नष्ट करके धन अर्जित करना ठीक नहीं। युवाओं के नशे में लिप्त होने पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि प्रधानमंत्री मोदी विदेशों में कहते हैं कि युवा उनकी ताकत हैं, परंतु वही नौजवान नशाखोरी में लिप्त हो रहे हैं। उन्हें सही मार्ग पर लाने के लिए नशाखोरी पर पाबंदी लगे व श्रम को बढ़ाया जाए, इसके लिए उन्होंने चीन का उदाहरण भी दिया। पुरी पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती ने वेद विहीन विज्ञान से हो रहे विकास को काल के रूप में परिभाषित किया। कहा कि महायंत्रों का आविष्कार व प्रयोग होने से दिव्य वस्तुओं का विनाश हो रहा है। ईसाई मिशनरियों की ओर इशारा करते हुए कहा कि क्रिश्चियन तंत्र 21वीं सदी में भी अपने यहां राजगद्दी व पोप के रूप में गुरु व्यास पीठ सुरक्षित रखे है, परंतु भारत में दोनों को खत्म करने की साजिश रच रहा है। देश की सत्ता की कार्यप्रणाली पर नाराजगी व्यक्त करते हुए कहा कि शासन तंत्र, विदेशी यंत्र बनकर काम कर रहा है। ऐसे में शंकराचार्य का दायित्व बनता है कि वह शासन पर शासन करके उन्हें सही दिशा दिखाएं। बोले कि आज की जीविका, शिक्षा, न्याय पालिका, कार्य पालिका एवं आचरण संस्कृति के अनुरूप नहीं है। उन्होंने अयोध्या में राम मंदिर न बनने पर कहा कि उसके लिए कौन जिम्मेदार हैं उस पर चिंतन की जरूरत है। अंत में 15 प्रस्ताव पारित किया गया। अखाड़ा परिषद अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरि ने गौ पालन पर जोर दिया। संचालन स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने किया। इस दौरान स्वामी निर्विकल्पानंद, स्वामी राघवाचार्य, प्रकाशाश्रम, महंत देवेंद्र सिंह, जयराम दास, महामंडेलश्वर संतोष दास सतुआबाबा, महंत रामतीर्थ दास, विमलदेव आश्रम, स्वामी जन्मेजय, स्वामी सुबुद्धानंद, ब्रह्माचारी रामानंद, विधायक विजय मिश्र मौजूद थे।
------
चार के अलावा कोई शंकराचार्य नहीं
'सनातन धर्म संसद' में शंकराचार्यो की बढ़ती संख्या पर भी चिंता व्यक्त की गई। शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती व शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती ने इस पर रोक लगाने पर जोर दिया। अखाड़ा परिषद अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरि ने कहा कि चार के अलावा जो शंकराचार्य लिखता है वह फर्जी है। ज्योतिष और द्वारिका पीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती हैं। पुरी पीठ के स्वामी निश्चलानंद सरस्वती व श्रंगेरी पीठाधीश्वर भारती तीर्थ हैं।
--------
मोदी के हाथ को करें मजबूत
इलाहाबाद : 'सनातन धर्म संसद' में संतों ने केंद्र की मोदी सरकार का हाथ मजबूत करने की भी अपील की। महंत जयरामदास ने कहा कि संतों के प्रयास से केंद्र की सत्ता पर तो काबिज हो गए। परंतु राज्यसभा में स्थिति ठीक नहीं है। इसके लिए संत जनजागरण करें ताकि उत्तर प्रदेश में अगली सरकार भाजपा की बने और हम राम मंदिर का निर्माण आसानी से करा सकें।
--------
गाना बजने पर विवाद
इलाहाबाद : 'सनातन धर्म संसद' के समय जगद्गुरु स्वामी नरेंद्रानंद सरस्वती के शिविर से भजन बज रहा था। शंकराचार्य स्वरूपानंद की अपील पर उसे बंद कराया गया। स्वामी नरेंद्रानंद ने कहा कि स्वामी स्वरूपानंद के लोगों ने उनका माइक तोड़ा है।
------
यह प्रस्ताव हुए पारित
-गंगा को बांधमुक्त किया जाए।
-पूरे देश में गोहत्या पर पाबंदी लगे।
-श्रीराम जन्मभूमि पर बालक रूपी मंदिर बने।
-सनातन परंपराओं पर हस्तक्षेप बंद हो।
-धर्मातरण, अर्थातरण एवं प्रतीकांतरण बंद हो।
-विद्यालयों में रामायण, महाभारत, गीता की पढ़ाई शुरू कराई जाए।
-मंदिरों से सरकारी हस्तक्षेप खत्म हो।
-स्वयंभू धर्माचार्यो पर पाबंदी लगे।
-संस्कृत भाषा को बढ़ावा मिले।
-सनातनी वर्णाश्रम व्यवस्था की अच्छाइयां उजागर हो।
-मौनी अमावस्या पर मौन रखा जाए।
-गंगा का बहिष्कार करने वालों का बहिष्कार हो।
-समान नागरिक संहिता का प्रारूप स्पष्ट हो।
-सोशल मीडिया पर सक्रिय होकर धर्मविरुद्ध बातों को रोका जाए।
-भारतीय संस्कृति में स्त्री, पुरुष समान नहीं, अपितु पूरक हैं।