'आने वाली नस्लें तुम पर फख्र करेंगी..'
जागरण संवाददाता, इलाहाबाद : 'आने वाली नस्लें तुम पर फख्र करेंगी हम असरो। जब उनको मालूम ये होगा तुमने
जागरण संवाददाता, इलाहाबाद : 'आने वाली नस्लें तुम पर फख्र करेंगी हम असरो। जब उनको मालूम ये होगा तुमने फिराक को देखा है।।'
'मेरे सिर से मां का साया बचपन में उठ गया। अब जब भी कभी मां की गोद की तलब महसूस होती है, मैं रामचरित मानस के पास जाता हूं'। कुछ ऐसा ही कहा था पद्मभूषण रघुपति सहाय उर्फ फिराक गोरखपुरी ने एक इंटरव्यू के दौरान। प्रख्यात गीतकार यश मालवीय के पिता साहित्यकार उमाकांत मालवीय से साक्षात्कार के दौरान उन्होंने यह बातें कही थी। उस समय यश भी वहां भी मौजूद थे। फिराक गोरखपुरी की जयंती की पूर्व संध्या पर उनकी यादें ताजा करते हुए यश मालवीय अतीत में खो गए। बोले, 'पिता उमाकांत मालवीय के साथ जब मैं फिराक साहब के घर गया था तब कक्षा नौ का छात्र था। वह (फिराक) पिता जी से बोले साक्षात्कार बाद में होगा, पहले बच्चे को जलेबी खिला दूं, उस समय उनके घर काम करने वाला व्यक्ति नहीं आया था। वह तहमत और कुर्ता पहनकर बाहर निकले और रिक्शे से मुझे जलेबी खिलाने नेतराम तक ले गए।
यश मालवीय बताते हैं कि इलाहाबाद विश्वविद्यालय में फिराक पूरी तैयारी से पढ़ाने जाया करते थे। सिर पर रूई वाली टोपी, हाथ में छड़ी, बदन में शेरवानी व पांव में नागरा पहनकर जब वह निकलते थे तो हर कोई अचरज भरी नजरों से देखता। ¨हदी साहित्य के शीर्ष निराला व उर्दू के शीर्ष पुरुष फिराक साहब के बीच सामंजस्य व सद्भाव हर रचनाकार के लिए अनुकरणीय है। फिराक ¨हदी व उर्दू भाषा को बहन जैसा मानते थे।
इलाहाबाद विश्वविद्यालय के उर्दू विभाग में प्रोफेसर अली अहमद फातमी कहते हैं 'मैं तो वाकई में खुशनसीब हूं कि मुझे फिराक साहब के संरक्षण में पढ़ाई करने के साथ साहित्यिक लेखन का मौका मिला'। फिराक गोरखपुरी के जीवन पर आधारित 'शायर दानिश्वर फिराक गोरखपुरी' नामक पुस्तक लिखने वाले प्रो. फातमी उनके शिक्षक स्वरूप को अब तक नहीं भुला सके हैं। बताते हैं कि फिराक अंग्रेजी के शिक्षक थे। कक्षा में छात्रों की समस्या का समाधान करते और मंच पर रचनाकारों का'। प्रो. फातमी ने उन्हें सबसे पहले 1969 में देखा था। दरअसल ज्ञानपीठ पुरस्कार मिलने के बाद उन्होंने बैंक रोड स्थित अपने बंगले पर जलसा आयोजित किया था। प्रो. फातमी उस समय इलाहाबाद विश्वविद्यालय में बीए प्रथम वर्ष के छात्र थे। कहते हैं कि उर्दू विभागाध्यक्ष प्रो. एहतेशाम हुसैन के साथ जलसे में जाने का मौका मिला। वहीं अमृत राय, उपेंद्रनाथ अश्क, भैरव प्रसाद गुप्त, अमरकांत, प्रो. रघुवंश, उमाकांत मालवीय जैसे रचनाकार थे। कुछ देर सवाल-जवाब का दौर चला तो किसी ने पूंछ लिया कि 'क्या आप आज उर्दू के सबसे बड़े शायर हैं?' इस पर फिराक साहब ने जवाब दिया कि 'मीर और गालिब नहीं रहे, इकबाल और जोश नहीं रहे। आप चाहें मुझ पर जो इल्जाम लगा लें।' यह सुनते ही खूब ठहाके लगे। युवा रचनाकार अनुपम परिहार फिराक गोरखपुरी को गंगा-जमुनी तहजीब का पर्याय मानते हैं। कहते हैं फिराक साहब राष्ट्रीय एवं सामाजिक एकता के पक्षधर थे। इस बात की झलक उनकी अधिकतर शायरी में नजर आती है।
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फिराक एक नजर में
जन्म : 28 अगस्त 1896 गोरखपुर उत्तर प्रदेश में।
-मृत्यु : तीन मार्च 1982 नई दिल्ली में।
-इलाहाबाद विश्वविद्यालय से अंग्रेजी में परास्नातक।
-इलाहाबाद विश्वविद्यालय में अंग्रेजी विभाग में शिक्षक ।
-प्रमुख कृतियां : गुले नगमा, बज्मे जिंदगी, रंगे शायरी, सरगम।
-पुरस्कार : पद्मभूषण, ज्ञानपीठ सहित अनेक सम्मान ।