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साहित्य नगरी में भुला दिए गए 'कलम के सिपाही'

जासं, इलाहाबाद : साहित्य के शिखर पुरुष कथाकार मुंशी प्रेमचंद का साहित्यिक नगरी इलाहाबाद से नाता खत्

By Edited By: Published: Fri, 31 Jul 2015 01:00 AM (IST)Updated: Fri, 31 Jul 2015 01:00 AM (IST)
साहित्य नगरी में भुला दिए गए 'कलम के सिपाही'

जासं, इलाहाबाद : साहित्य के शिखर पुरुष कथाकार मुंशी प्रेमचंद का साहित्यिक नगरी इलाहाबाद से नाता खत्म सा होता जा रहा है। प्रेमचंद इलाहाबाद व वाराणसी को साहित्य की दो आंखें मानते थे। इलाहाबाद प्रेमचंद की रचनात्मक ऊर्जा का केंद्र भी था। यही कारण है कि वह हर दो-तीन माह में यहां आते रहते थे। यह शहर उनके कई अहम फैसलों का गवाह भी रहा है, उसमें सबसे महत्वपूर्ण है 'हंस' का प्रकाशन व सरस्वती प्रेस की नीव रखना जिनके जरिए प्रेमचंद ने ¨हदी साहित्य को एक नया आयाम दिया। बावजूद इसके शहर में प्रेमचंद की न कोई प्रतिमा है, न ही स्मारक स्थल। 'कलम के सिपाही' की यह उपेक्षा कलमकारों को खूब सालती है।

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प्रेमचंद इलाहाबाद को साहित्यिक तपोभूमि मानते थे। वे यहां लेखन के सिलसिले में खूब आते थे। छायावादी आलोचक गंगा प्रसाद पांडेय, महीयसी महादेवी वर्मा, सुभद्रा कुमार चौहान, भारती भंडार के वाचस्पति पाठक, उमा राव, बालकृष्ण राव से मुंशी प्रेमचंद के पारिवारिक रिश्ते थे। वह इन्हीं के यहां रुककर लेखन करते थे। अपनी चर्चित कहानी 'ईदगाह' का अधिकतर भाग यहीं लिखा। 'कफन' का पहला ड्राफ्ट इलाहाबाद में ही पूरा किया। प्रख्यात कथाकार दूधनाथ सिंह कहते हैं कि इलाहाबाद में प्रेमचंद से जुड़ी यादें न होना चिंता की बात है। वाराणसी की तरह इलाहाबाद भी उनकी कर्मभूमि रहा है। वह प्रशासन से धोबी घाट चौराहे पर मुंशी प्रेमचंद की आदमकद प्रतिमा लगाने की मांग करते हैं। युवा साहित्यकार रविनंदन सिंह कहते हैं कि अगर प्रेमचंद से जुड़ी यादों को जल्द नहीं संजोया गया तो भावी पीढ़ी उनका यहां से रिश्ता ही नहीं जान पाएगी।

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सिर्फ यादों में हंस व सरस्वती

¨हदी साहित्य को संरक्षित करने एवं उसके प्रचार-प्रसार के लिए प्रेमचंद ने हंस प्रकाशन और सरस्वती प्रेस की स्थापना कराई जहां से हजारों पुस्तकें प्रकाशित हुई। प्रेमचंद के बेटे अमृत राय ने उनकी जीवनी पर आधारित 'कलम का सिपाही' पुस्तक को हंस प्रकाशन से प्रकाशित कराई। यह ऐसी पुस्तक थी जिसने अमृत को जीते जी अमर बना दिया। ¨हदी साहित्य के क्षरण का असर हंस और सरस्वती प्रेस पर भी पड़ा। ¨हदी साहित्य के दिल्ली की ओर रुख करने पर हंस प्रकाशन 1982-83 में वहां चला गया। जबकि सरस्वती प्रेस भी कुछ साल पहले बंद हो गया।

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महादेवी ने कराया बेटे का विवाह

मुंशी प्रेमचंद का इलाहाबाद से साहित्यिक लगाव होने के साथ ही पारिवारिक रिश्ता भी है। गीतकार और कवि यश मालवीय बताते हैं कि मुंशी प्रेमचंद के बेटे अमृत राय, लेखिका सुभद्रा कुमारी चौहान की बेटी सुधा चौहान से शादी करना चाहते थे। परंतु वह अपने पिता से यह बात कहने की हिम्मत नहीं जुटा पाए। उन्होंने महादेवी से सुधा से शादी करने की इच्छा प्रकट की। फिर महादेवी ने यह बात प्रेमचंद को बताई और उनका विवाह हो गया।

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'संस्कार से जुड़ें हैं प्रेमचंद'

साहित्यकारों की राजधानी के रूप में शुमार इलाहाबाद में मुंशी प्रेमचंद की एक भी प्रतिमा न होने से आहत कवि यश मालवीय इसे साहित्यिक क्षरण के रूप में देखते हैं। वह कहते हैं प्रेमचंद की प्रासंगिकता काफी ऊपर है, जिनको सहेजना सबकी जिम्मेदारी है। प्रेमचंद की रचना को याद करके हम अपना संस्कार बनाते हैं और भूलने पर स्वयं का अस्तित्व समाप्त कर लेते हैं।

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मुख्यमंत्री को लिखा पत्र

इलाहाबाद में प्रेमचंद की प्रतिमा लगाने की मांग को लेकर जिला प्रशासन से कई बार गुहार लगाने वाले युवा रचनाकार अनुपम परिहार ने मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को पत्र लिखा है। उन्होंने इलाहाबाद की साहित्यिक विरासत पर प्रकाश डालते हुए प्रेमचंद से रिश्ते का उल्लेख किया। कहा कि प्रेमचंद की प्रतिमा लगने से रचनाकारों का मान बढ़ेगा।


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