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हर उस दर पर खत, जहां से है आस

जागरण संवाददाता, इलाहाबाद : 'कामयाबी से खुश जरूर हूं, लेकिन डरता हूं कि कहीं गरीबी बाबा की तरह मेरी

By Edited By: Published: Fri, 03 Jul 2015 01:01 AM (IST)Updated: Fri, 03 Jul 2015 01:01 AM (IST)
हर उस दर पर खत, जहां से है आस

जागरण संवाददाता, इलाहाबाद : 'कामयाबी से खुश जरूर हूं, लेकिन डरता हूं कि कहीं गरीबी बाबा की तरह मेरी जिंदगी में भी विकलांगता न घोल दे।' यह कहना है ज्वाइंट एडमिशन इन एमएससी (जैम) के जरिए आइआइटी कानपुर में चयनित गुदड़ी के लाल मनोज कुमार पटेल का। गुरुवार को उन्होंने दैनिक जागरण से बातचीत में कहा कि आइआइटी में प्रवेश ले सकूं, इसलिए नेताओं को भी खत लिखा है..देखते हैं क्या होता है?

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अमेठी और आसपास के बाजारों में सब्जी बेचकर घर चलाते थे शीतलदीन। वह मनोज के बाबा हैं और पिछले छह महीने से बिस्तर पर हैं। डॉक्टरों ने साफ कह दिया है कि वह चल-फिर नहीं पाएंगे। बाजार से लौटते समय सड़क हादसे में उनका पैर टूट गया था और धनाभाव के कारण वह इलाज नहीं करा पाए। परिवार की माली हालत के मद्देनजर मनोज को अभी भी यह विश्वास नहीं है कि वह आइआइटी कानपुर से एमएससी कर सकेंगे अथवा नहीं। वह आर्थिक मदद के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, कांग्रेस उपाध्यक्ष तथा क्षेत्रीय सांसद राहुल गांधी और मुख्यमंत्री अखिलेश सिंह यादव को खत लिख चुके हैं। दरअसल उनके पिता के पास इतना धन नहीं है कि वह उनकी आइआइटी में पढ़ाई का खर्च उठा सकें। सिर्फ एक सेमेस्टर की फीस 43, 400 रुपये है। दो साल का कोर्स है और इसमें चार सेमेस्टर होंगे। अभी तक काउंसलिंग के लिए 10 हजार रुपये का ही इंतजाम हो सका है। फिलहाल इलाहाबाद में रह रहे मनोज की फीस उसके मामा अमरजीत पटेल देते हैं। बाकी खर्च वह ट्यूशन कर चला रहे हैं।

मनोज दिसंबर 2014 में सीएसआइआर की नेट परीक्षा में भी सफल रहे हैं। अमूमन एमएससी प्रथम वर्ष में ही नेट क्वालीफाई करना आसान नहीं माना जाता। मनोज साफ कहते हैं कि सरकार के स्तर पर मदद नहीं मिली तो शायद ही वह अपने मकसद में कामयाब हो पाए।


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