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हाईकोर्ट सुरक्षा में तैनात हेड कांस्टेबल की मौत

जागरण संवाददाता, इलाहाबाद : हाईकोर्ट की सुरक्षा में तैनात हेड कांस्टेबल कृष्ण गोपाल यादव की गुरुवार

By Edited By: Published: Thu, 28 May 2015 09:29 PM (IST)Updated: Thu, 28 May 2015 09:29 PM (IST)
हाईकोर्ट सुरक्षा में तैनात
हेड कांस्टेबल की मौत

जागरण संवाददाता, इलाहाबाद : हाईकोर्ट की सुरक्षा में तैनात हेड कांस्टेबल कृष्ण गोपाल यादव की गुरुवार की सुबह अचानक तबीयत बिगड़ गई। उनके हाथ-पैर कांपने लगे और वह अचेत हो गए। उनको स्वरूपरानी नेहरू अस्पातल में भर्ती कराया गया, जहां थोड़ी देर बाद उनकी मौत हो गई। कृष्ण गोपाल की तबीयत बिगड़ने से पहले सीओ हाईकोर्ट सुरक्षा किरण सिंह चौहान ने उनको ड्यूटी से गायब रहने पर फटकार लगाई थी और स्पष्टीकरण भी तलब किया था। परिजनों का आरोप है कि उसी सदमे से उनकी मौत हो गई।

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बांदा जिले की देहात कोतवाली अंतर्गत महोखर गांव में रहने वाले कृष्ण गोपाल यादव (55) 1997 बैच के कांस्टेबल थे। तीन महीने पहले हेड कांस्टेबल के पद पर प्रोन्नति होने के बाद उनको चित्रकूट से हाईकोर्ट सुरक्षा के लिए स्थानांतरित कर दिया गया था। सुबह उनकी डयूटी कैंटीन पर लगी थी। इसी बीच सीओ किरण सिंह चौहान निरीक्षण को निकली तो देखा कि कृष्ण गोपाल वहां मौजूद नहीं हैं। थोड़ी देर बाद वह आए तो सीओ ने उनको डांटा और डयूटी से गायब रहने की वजह पूछी। कृष्ण गोपाल ने बताया कि वह खाना खाने गए थे। उसके थोड़ी देर बाद उनकी तबीयत बिगड़ने लगी तो सीओ अपनी गाड़ी से लेकर उनको स्वरूपरानी नेहरू अस्पताल लाई, जहां थोड़ी देर बाद कृष्ण गोपाल की सांसें थम गई। सूचना मिलने पर पहुंचे परिजनों ने सीओ की फटकार से कृष्ण गोपाल को सदमा लगने की बात बताई है। हालांकि सीओ किरण सिंह चौहान का कहना है कि ड्यूटी से गायब रहने पर उन्होंने कृष्ण गोपाल से वजह जरूर पूछी थी, मगर फटकार जैसी कोई बात नहीं थी। एसपी सिटी राजेश कुमार का भी कुछ ऐसा ही कहना है। उनके मुताबिक हेड कांस्टेबल डयूटी पर नहीं थे। इस बारे में जानकारी जुटाना सीओ की जिम्मेदारी है। उसमें सदमे जैसी कोई बात नहीं।

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कैसे चलेगा परिवार

कृष्ण गोपाल अपने पीछे पत्‍‌नी शांति देवी, पुत्र राममिलन और पुत्रियों नीलम व गायत्री का भरा-पूरा परिवार छोड़ गए हैं। फिलहाल परिवार का खर्च कृष्ण गोपाल की तनख्वाह से ही चलता था। पुत्र राममिलन एक निजी स्कूल में शिक्षण कार्य करते हैं। उससे मिलने वाली तनख्वाह से परिवार चलाना मुश्किल है। ऐसे में परिजनों और रिश्तेदारों की जुबां पर यही सवाल था कि अब उनके परिवार का बोझ कौन उठाएगा।


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