'आटोमेटेड गाइडेड व्हैकिल' दौड़ाएंगे अर्चन
जासं, इलाहाबाद : आटोमेटेड गाइडेड व्हैकिल हमारा और आपका सपना हो सकता है, लेकिन इस सपने को अपना बनाने
जासं, इलाहाबाद : आटोमेटेड गाइडेड व्हैकिल हमारा और आपका सपना हो सकता है, लेकिन इस सपने को अपना बनाने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं अर्चन मुदवल। हर चीज को प्रैक्टिकल रूप में देखने की तमन्ना ने अर्चन को मेधावी से 'खास' बना दिया है। शायद उनकी अलग दृष्टि से ही देश के चुनिंदा संस्थानों में से एक मोतीलाल नेहरू राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान (एमएनएनआइटी) इलाहाबाद के 11वें दीक्षांत समारोह में एक नहीं चार स्वर्ण पदक उनके गले का हार बने हैं।
मूलरूप से आर्यनगर कानपुर के रहने वाले अर्चन शुरू से ही मेधावी रहे हैं। सीलिंग हाउस कालेज कानपुर में 10वीं में 96.6 एवं 12वीं में 94 फीसदी अंकों से पास किया था। पिता विनय कुमार होम्योपैथी के बिजनेस में हैं और उनके बड़े भाई ईशान बेंगलुरु की साफ्टवेयर कंपनी यूनिसेस में कार्य कर रहे हैं। 23 वर्ष के अर्चन ने एमएनएनआइटी से मैकेनिकल इंजीनिय¨रग में बीटेक किया तो इतिहास रच दिया। उन्हें पूरे संस्थान में सर्वाधिक अंक पाने के लिए संस्थान स्वर्ण पदक से नवाजा गया। ऐसे ही मोहित चतुर्वेदी मेमोरियल गोल्ड मेडल व विमल चंद्र अग्रवाल गोल्ड मेडल के साथ ही 2014 में मैकेनिकल इंजीनिय¨रग का भी स्वर्ण पदक उन्हें मिला है। उनकी ख्वाहिश अब जर्मनी या फिर यूएस से एमएस करने की है। अर्चन आटोमोबाइल फील्ड में कुछ ऐसा करना चाहते हैं जिससे वह पूरी दुनिया में धूम मचा दें। बोले, आटोमेटेड गाइडेड व्हैकिल पर निरंतर शोध हो रहे हैं, वे इस दिशा में काम करना चाहेंगे। कहा कि यह जरूरी नहीं है कि युवा कई घंटे बैठकर पढ़ें, मैंने तो कभी घंटों में बंधकर पढ़ाई नहीं की, लेकिन कभी क्लास मिस नहीं किया। जो पढ़ाया गया उसे प्रैक्टिकल रूप में देखा जरूर, जो नहीं देख पाया है उसे होते देखने के लिए काम करूंगा।