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पाठकनामा पाठकनामा

एक नहीं दो-दो मात्राएं गुप्त जी की यह पंक्ति नारी के सन्दर्भ में कितनी सार्थक है, परन्तु यह सार्थक

By Edited By: Published: Wed, 04 Mar 2015 09:08 PM (IST)Updated: Wed, 04 Mar 2015 09:08 PM (IST)
पाठकनामा पाठकनामा

एक नहीं दो-दो मात्राएं

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गुप्त जी की यह पंक्ति नारी के सन्दर्भ में कितनी सार्थक है, परन्तु यह सार्थकता समाज में कितनी प्रभावी है, यही चिन्तन का विषय है। आदि काल से ही नारी को देवी के रूप में मानकर उसकी महत्ता को स्वीकार किया गया था। परन्तु मध्य काल से नारी की अस्मिता, गौरव, अधिकार व स्वतंत्रता पर संकट आ गया। समाज में उसकी गणना को नकार दिया। फलत: अनेक प्रकार की कुप्रथाओं ने जन्म लिया। दहेज प्रथा, सती प्रथा, बाल विवाह, अशिक्षा, पर्दा प्रथा के अलावा नारी की स्वतंत्रता पर भी पहरा लगा दिया गया। आज विज्ञान व विकास के इस युग में हम बातें तो बड़ी-बड़ी करते हैं और अनेक प्रकार की संगोष्ठियों का आयोजन नारी के सशक्तीकरण के सन्दर्भ में करते हैं। इतना ही नहीं परन्तु इसका कितना लाभ नारी को मिलता है, यह सोचनीय प्रसंग है, वह अभी भी पुरुष व समाज पर आर्थिक रूप निर्भर है तथा निर्णय लेने का भी अधिकार नहीं है। नारी शिक्षित होकर बच्चों को उचित शिक्षा व संस्कार देकर परिवार व समाज तथा देश का कल्याण करती है तथा पुरुष के कंधा से कंधा मिलाकर हर क्षेत्र में विकास के पथ पर अग्रसर होकर राष्ट्र की उन्नति में अपनी सहभागिता देती है। आज आवश्यकता है कि नारी की दुर्गा (शक्ति की देवी) लक्ष्मी (धन की देवी) सरस्वती (विद्या की देवी) के रूप में स्वीकार कर समाज में उसका अधिकार व मान बढ़ायें।

स्नेहलता श्रीवास्तव,तिलक नगर, इलाहाबाद

¨जदगी की नहीं रह गई कोई गारंटी

जिस तरह से प्रदेश में क्राइम का ग्राफ बढ़ा है, इससे साबित हो गया है कि मौजूद सरकार में ¨जदगी की कोई गारंटी नहीं रह गई है। जब खास लोग ही सुरक्षित नहीं हैं तो आमजन कहां से सुरक्षित रहेंगे। यदि हालात नहीं सुधरे तो ¨जदगी की खुशियां गुम हो जाएंगी। अमूमन देखा जाता है कि कोई हादसा होने के बाद ही सरकारी एजेंसियां अलर्ट होती हैं। ये एजेंसियां हादसा होने के पहले क्यों नहीं सजग होतीं, यह लोगों को हजम नहीं हो रहा है। या यूं कहा जा सकता है कि अपने कर्तव्यों का पालन करने में कोताही बरती जा रही है। हर आम व खास को महफूज ¨जदगी की गारंटी चाहिए। इसके बावजूद पुलिस प्रशासन पूरी तरह से बेलगाम हो गया है। न तो आला अफसरों का कोई दबाव है और न ही शासन के निर्देशों का सही ढंग से पालन किया जा रहा है। ऐसी परिस्थिति में लोग कैसे महफूज रह सकते हैं।

सत्यदेव दुबे, इचौली कौशांबी

साहित्य के साथ सौतेला व्यवहार

साहित्य, समाज का पथ प्रदर्शक होता है। इससे समाज को नई ऊर्जा मिलती है। साहित्य राजनीति को भी दिशा देता है। किसी भी देश के साहित्य को पढ़कर उस देश के सांस्कृतिक स्तर को भांपा जा सकता है। राजनीति का संरक्षण प्राप्त होने पर साहित्य की और अधिक उन्नति होनी चाहिए, लेकिन आज साहित्य की सुधि लेने वाला कोई नहीं है। इसकी उपेक्षा की जा रही है। इसी के चलते उत्तर प्रदेश में हिन्दी संस्थान के कई पुरस्कार बंद कर दिए गए हैं। आखिर साहित्य के साथ इस प्रकार का सौतेला व्यवहार कब बंद होगा। इस गंभीर समस्या की ओर ध्यान देने की जरूरत है। इसके लिए जनता को तो आवाज बुलंद करनी ही चाहिए, साथ ही शासन-प्रशासन स्तर पर भी मंथन करने की जरूरत है।

हर्षित ¨सह,लूकरगंज, इलाहाबाद

जख्म हरे अब भी

देश में उत्तराखंड त्रासदी ने हजारों श्रद्धालुओं को जाने कहां गायब कर दिया। उनके परिजन न उनको पा सके और न उनके नाम पर कोई मदद। वह तारीख आस्था की डायरी में खून की तारीख बन गई। मोक्ष की लालसा में उत्तराखंड गए हजारों लोगों का कोई पता नहीं चला। उनके परिजन उनको तलाश कर निराश हो चुके हैं। इनकी हर सुबह आंसू बहाते आती है और हर शाम गम का झोंका लेकर आती है। एक-एक पल अपनों के विछड़ने का बोझ रहता है, जो कि समय के साथ भारी होता जा रहा है। इनके घरों की रौनक चली गई, उत्सवों ने मायने खो दिया। मांगलिक आयोजनों ने अपनी चमक खो दी। इन परिवारों में किसी भी खुशी के अवसर की कोई धूम नहीं हो रही। हर पल यही चर्चा है कि जाने वह कौन सी मनहूस घड़ी थी जब ये लोग दर्शन की लालसा में घर से निकले। अब तो चर्चा करने से भी जख्म हरे हो जाते हैं।

शुभम तिवारी, सगरा प्रतापगढ़

आसान नहीं राह

सरकार कहती है ड्राइविंग लाइसेंस के बिना वाहन न चलाएं। लेकिन इसे बनवाना भी आसान नहीं है। वैसे तो इसके लिए सीधे कार्यालय पहुंच कर फार्म भरें। शुल्क जमा करने के उपरांत घर के पते पर लाइसेंस भेजा जाता है। जिनके पास पुराने ड्राइविंग लाइसेंस हैं वे निर्धारित शुल्क तीन सौ रुपये जमा कर स्मार्ट डीएल बनवा सकते हैं। बीस वर्ष या इससे अधिक आयु हो तथा लाइसेंस एक बने एक साल हो गया हो। सबसे पहले लर्निग बनेगा इसका शुल्क 30 रुपये है। एक माह बाद मोटर ट्रेनिंग स्कूल के प्रमाण पत्र के साथ 80 रुपये शुल्क जमा कर लाइसेंस बनवाया जा सकता है। यह सब कहने की बाते हैं। दरअसल दलालों के आगे इसे बनवाने की राह में तमाम मुश्किलें हैं। सरकार नहीं सोचती इस बारे में।

राम नारायण यादव सांगीपुर प्रतापगढ़


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