इलाहाबाद की टोली, छत्तीसगढ़ की होली
जासं, इलाहाबाद : होली रंगों का पर्व है। इस पर्व को लेकर लोगों का उल्लास चरम पर है। शायद इसी कारण इसक
जासं, इलाहाबाद : होली रंगों का पर्व है। इस पर्व को लेकर लोगों का उल्लास चरम पर है। शायद इसी कारण इसको सबसे बड़े पर्व का दर्जा प्राप्त है। खास बात यह कि रंगों के इस त्यौहार में परंपराएं भी बड़ी भूमिका निभाती हैं। इसकी एक झलक यमुनापार क्षेत्र में दिखती है। वहां छत्तीसगढ़ के हजारों मजदूर होली पर्व को अपने अंदाज में मनाते हैं। छत्तीसगढ़ की इस अनूठी होली में क्षेत्रीय लोग भी हिस्सा लेते हैं।
यमुनापार इलाके में बीस हजार से ज्यादा ईट भट्टा व पत्थर मजदूर रहते हैं। जीविकोपार्जन के लिए यहां आकर बसे मजदूर पर्वो को अपने अंदाज में मनाते हैं। खासकर उनका होली मनाने का तरीका हमेशा से स्थानीय लोगों को आकर्षित करता रहा है। वैसे तो जनपद में होली दो दिन मनाई जाती है, लेकिन मजदूरों की बस्तियों में इसकी धूम एक सप्ताह पहले ही शुरू हो जाती है। दिन में रंग खेला जाता है और शाम को छत्तीसगढ़ी गीतों की धूम रहती है। ढोल मजीरा के साथ मजदूरों की टोली नाचते गाते एक बस्ती से दूसरी बस्ती का चक्कर लगाती है। रंग बरसे हे बिरिज धाम मा, कान्हा खेले रहे होली। वृंदावन ले आए हवे, गोली ग्वाल के टोली जैसे गीतों को गाते होलियारों की टोली जिधर से गुजरती है, वहां के लोग भी इसमें शामिल हो लेते हैं। यही नहीं अबीर गुलाल लगाने के साथ ही इनके लिए जलपान का प्रबंध भी किया जाता है।
शंकरगढ़ निवासी रामसूचित आदिवासी बताते हैं कि हमारे दादा छत्तीसगढ़ से यहां मजदूरी के लिए आए थे। तब से उनके परिजन यहीं रह रहे हैं। कहने को तो अब हम इलाहाबादी हो गए हैं, लेकिन परंपराओं ने अभी तक हमारा पीछा नहीं छोड़ा है। प्रमुख पर्वो पर इसका अहसास भी होता है। बताते हैं कि होली पर उनकी बस्ती में होने वाले जश्न में स्थानीय लोग भी हिस्सा लेते हैं।