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'पीके' को फंसाने में खुद फंसेगा विश्वविद्यालय

जासं, इलाहाबाद : आखिरकार वही हुआ जिसकी उम्मीद थी। पूर्व वित्त अधिकारी 'पीके' सिंह को दोबारा मौका देन

By Edited By: Published: Thu, 29 Jan 2015 01:02 AM (IST)Updated: Thu, 29 Jan 2015 01:02 AM (IST)
'पीके' को फंसाने में खुद फंसेगा विश्वविद्यालय

जासं, इलाहाबाद : आखिरकार वही हुआ जिसकी उम्मीद थी। पूर्व वित्त अधिकारी 'पीके' सिंह को दोबारा मौका देने से इलाहाबाद विश्वविद्यालय ने साफ मना कर दिया है। ऐसे में ऊहापोह के माहौल पर तो विराम लग गया है, पर उनके कार्यकाल की जांच कराने से विवि ने हाथ खींच लिए हैं।

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इलाहाबाद विश्वविद्यालय के पूर्व वित्त अधिकारी पीके सिंह की भर्ती से लेकर उनके इस्तीफे तक की पूरी प्रक्रिया पर विवाद खड़ा होता रहा है। यह बात विवि के संस्कृत विभाग के डॉ. रामसेवक दुबे ने राष्ट्रपति को भेजे पत्र में लिखा है। उनके अनुसार पूर्व वित्त अधिकारी की नियुक्ति गलत अभिलेखों के आधार पर की गई। यानी उनके पास इस पद पर नियुक्त होने की न्यूनतम योग्यता तक नहीं थी। यही नहीं उस समय विश्वविद्यालय में वित्त अधिकारी के साथ ही परीक्षा नियंत्रक और कुलसचिव के पद पर भी नियुक्तियां हुई थी और दोनों पदों पर विश्वविद्यालय के प्रोफेसर को मौका दिया गया, लेकिन तीसरे महत्वपूर्ण पद पर प्रोफेसर छोड़िए न्यूनतम योग्यता न रखने वाले को मौका दिया गया। उनका कहना है कि शुरुआत में नियम-कानूनों की धज्जियां उड़ गई तो फिर उसने पद पर रहकर बाकी रही सही कसर पूरी कर दी। 16 जुलाई 2010 को उनकी नियुक्ति देने वाले अफसर भी भ्रष्टाचार के उतने ही बड़े दोषी हैं, जैसे आरोप पूर्व अधिकारी पर लग रहे हैं।

प्रो. राम सेवक दुबे ने पत्र में कहा है कि पूर्व वित्त अधिकारी के समय विश्वविद्यालय की नियमावली भी उसी के इशारे पर चल रही थी। इसीलिए विवि की एक बड़ी धनराशि निजी बैंक में सावधि के रूप में जमा कराई गई। प्रो. दुबे का कहना है कि इससे निजी बैंक में कार्यरत पूर्व अफसर के परिजन को प्रमोशन मिला और अफसर को धनराशि पर अच्छा खासा ब्याज हासिल हुआ।

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'काउंसिल ने पूर्व वित्त अधिकारी को दोबारा मौका देने से मना कर दिया है। जांच आदि का निर्णय भी काउंसिल को ही करना है।'

प्रो. बीपी सिंह, रजिस्ट्रार इलाहाबाद विश्वविद्यालय

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'यदि मैं अर्ह नहीं था तो 2010 में 11 लोगों में से मेरा ही चयन क्यों हुआ। विश्वविद्यालय की नियमावली में तीन विकल्प दिए गए हैं उन्हें मैं पूरा करता हूं। पैसा उन्हीं बैंकों में जमा कराया जो मानव संसाधन विकास मंत्रालय से स्वीकृत हैं। संस्कृत विभाग के डॉ. रामसेवक दुबे की नियुक्ति गलत है। उन्होंने जो धन लाभ लिया है वह भी गलत है।'

पीके सिंह, पूर्व वित्त अधिकारी इलाहाबाद विश्वविद्यालय


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