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कलमकार विद्याधर शुक्ल नहीं रहे

जागरण संवाददाता, इलाहाबाद : अस्सी के दशक में अपनी लेखन से धूम मचाने वाले प्रसिद्ध आलोचक विद्याधर शुक

By Edited By: Published: Wed, 28 Jan 2015 07:40 PM (IST)Updated: Thu, 29 Jan 2015 05:23 AM (IST)
कलमकार विद्याधर शुक्ल नहीं रहे

जागरण संवाददाता, इलाहाबाद : अस्सी के दशक में अपनी लेखन से धूम मचाने वाले प्रसिद्ध आलोचक विद्याधर शुक्ल (71 वर्ष) का निधन हो गया। अपनी बेबाक आलोचना से ¨हदी साहित्य को धार देने वाले इस कलम के सिपाही ने बुधवार को एक नर्सिग होम में अंतिम सांस ली। निधन की खबर सुनते ही प्रयाग के साहित्य जगत में शोक की लहर दौड़ गई। बुधवार दोपहर रसूलाबाद घाट पर उनका अंतिम संस्कार किया गया। इस अवसर पर नगर के तमाम साहित्यकार व गणमान्य लोग भी उपस्थित थे। लगभग एक माह पहले ही उन्हें मस्तिष्क आघात (ब्रेन हेमरेज) के कारण उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया था। 60 के दशक में आलोचना शुरू करने वाले शुक्ल ने बिना लाग लपेट सच को बयां किया। उन्होंने भैरव प्रसाद गुप्त, मारकंडेय व अमरकात जैसे कलम के सिपाहियों संग तब तब चर्चा में आए जब उन्होंने धारदार साहित्यिक आलोचना प्रारम्भ की। 1980 में साहित्यनामा का प्रकाशन शुरू किया और 1982 से लेखन का संपादन व प्रकाशन। लेखन पत्रिका के तमाम विशेषांक सुर्खियों में रहे। निराला विशेषांक से प्रदेश के तत्कालीन राज्यपाल विष्णुकांत शास्त्री तो इतने प्रभावित हुए थे कि उन्होंने इसकी आजीवन सदस्यता ग्रहण कर ली थी। विद्याधर शुक्ल का जन्म मिर्जापुर के एक गांव में 1944 में हुआ था। शिक्षा ग्रहण करने के बाद उन्होंने 'विद्यार्थी' के नाम से कविता लिखनी शुरू कर दी थी। उनके जनवादी कहानी संग्रह ने भी लोगों का ध्यान अपनी ओर आकृष्ट किया। अपनी साहित्यिक दृष्टि के चलते वे मार्कंडेय, शेखर जोशी, नीलकांत व सतीश जमाली की श्रेणी के लेखक बन बैठे। प्रेमचंद की विरासत बनाम ¨हदी कहानी जैसा ग्रंथ भी इन्होंने लिखा। उनके द्वारा लिखे संस्मरण, कविता और आलोचना ने पाठकों में गहरी छाप छोड़ी। प्रलेस के जिलाध्यक्ष संतोष भदौरिया ने बताया कि शुक्ल का तेवर और लेखन दूसरों से अलग रहा है। आलोचना का वह विवेक उनमें था जिससे दूसरे लोग बचते रहे हैं, लेकिन सरकार ने उनकी सुधि नही ली और वे दुनिया से विदा हो गए। शुक्ल के परिवार में उनकी पत्‍‌नी, तीन पुत्र व एक पुत्री हैं।

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