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शंकर का मठ, गणित की पीठ

एल एन त्रिपाठी, इलाहाबाद : दशकों से प्रचलित आम कम्प्यूटर से लेकर सुपर कम्प्यूटर तक की भाषा यानि बाइन

By Edited By: Published: Mon, 26 Jan 2015 01:00 AM (IST)Updated: Mon, 26 Jan 2015 01:00 AM (IST)
शंकर का मठ, गणित की पीठ

एल एन त्रिपाठी, इलाहाबाद : दशकों से प्रचलित आम कम्प्यूटर से लेकर सुपर कम्प्यूटर तक की भाषा यानि बाइनरी नंबर में त्रुटियां हैं। अगर यह कहा जाए तो सहसा विश्वास नहीं होगा। कहने वाला अगर गैर वैज्ञानिक, गैर गणित, गैर कम्प्यूटर पृष्ठभूमि का हो तो विश्वास करना और भी कठिन होगा। आखिर दशकों से यह भाषा पूरी दुनिया में इस्तेमाल हो रही है। कहीं कोई गड़बड़ी होती तो अब तक पकड़ी जा चुकी होती।

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हकीकत यही है कि एक संत ने यह गड़बड़ी पकड़ी है। वह हैं शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती। सनातन धर्म के सर्वोच्च पथ प्रदर्शक माने जाने वाले शंकराचार्य गणित की दुनिया में भी अपना महत्वपूर्ण स्थान बना चुके हैं। बाइनरी में एक सीमा के बाद किस तरह तारतम्यता भंग होती है, 'द्वैंक पद्धति' (बाइनरी सिस्टम) नामक शोध पुस्तक में यह उन्होंने बताया है। गणित के क्षेत्र में यह तथा ऐसी तमाम उपलब्धियां अब तक उनके खाते में जुड़ चुकी हैं। इन पर आक्सफोर्ड से लेकर कैम्ब्रिज तक शोध हो रहे हैं।

स्वामी निश्चलानंद सरस्वती जगन्नाथपुरी स्थित गोवर्धनपीठ के शंकराचार्य हैं। आदि शंकर द्वारा स्थापित यह पीठ पिछले 90 वर्षो से गणित की पीठ या चेयर ऑफ मैथमेटिक्स बन चुकी है। इस पीठ पर बैठे शंकराचार्यो ने सनातन धर्म के ग्रंथों में छिपे गणित को दुनिया के सामने लाकर सनातन भारतीय मेधा का परिचय दिया है। साथ ही यह भी साबित किया है कि वेद व वेदांग कपोल कल्पनाएं नहीं हैं। इनमें विज्ञान व गणित कूट कूट कर भरा है।

शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती के अनुसार शुक्ल यजुर्वेद के तहत आने वाला रुद्राष्टाध्यायी इसका बेहतरीन उदाहरण है। इसमें श्लोक आते हैं एका च मे, पंच च मे, सप्त च मे आदि। यह तथा ऐसे अनगिनत ऋचाएं यह बताने के लिए पर्याप्त हैं कि वेदकाल के भारतीय ऋषि न सिर्फ अंकों से परिचित थे वरन गणित में आज प्रचलित विभिन्न क्रियाएं जिसमें जोड़, घटाना, गुणा, भाग से लेकर बीजगणित, रेखागणित, त्रिकोणमिति आदि शामिल है। स्वामी निश्चलानंद अब तक गणित की दस पुस्तकें लिख चुके हैं। इनमें अंक पद्यम या सूत्र गणित, स्वस्तिक गणित, गणित दर्शन, शून्येक सिद्धि, द्वैंक पद्धति आदि शामिल है। गणित पर लेखन का कार्य अभी जारी है।

90 वर्षो से चल रहा गणित का अनुसंधान

गोवर्धन पीठ के शंकराचार्य स्वामी भारती कृष्ण तीर्थ ने वेदों की ऋचाओं में गणित के सूत्र खोज निकाले थे और वैदिक गणित के नाम से दुनिया को परिचित कराया था। बिना कैलकुलेटर या कम्प्यूटर बड़ी से बड़ी और जटिल गणना सरलता से करने की इस पद्धति की आज दुनिया कायल है। स्वामी भारती तीर्थ सन्यास से पूर्व गणित के विद्यार्थी थे तथा अध्यापन भी किया था। उनकी इस परंपरा को स्वामी निश्चलानंद ने जारी रखा। मूलत: बिहार के हरीपुर बख्शी टोला के रहने वाले स्वामी निश्चलानंद दसवीं तक पढ़ने के बाद वेदांगों के अध्ययन के लिए काशी आ गए थे। स्वामी निरंजन देव तीर्थ के बाद वर्ष 1992 में पुरी पीठ के शंकराचार्य बनाए गए। इसके साथ ही गणित के दार्शनिक पक्ष पर उनका चिंतन शुरू हुआ। 2006 में अंक पद्यम नामक पुस्तक के रूप में यह चिंतन सामने आया। यह श्रंखला जारी है।


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