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भस्मासुर बना तालिबान तालिबानी आतंकवादियों ने पाकिस्तान के पेशावर में एक आर्मी स्कूल के बच्चों की ज
भस्मासुर बना तालिबान
तालिबानी आतंकवादियों ने पाकिस्तान के पेशावर में एक आर्मी स्कूल के बच्चों की जिस निमर्मता से हत्या की उसकी मिशाल शायद ही कहीं मिले। 130 से ज्यादा बच्चों के सिर और आंखों समेत जिस्म के अन्य हिस्सों पर जिस तरह गोली मारी गयी है, उसे सोचकर, देखकर आंखें नम हो जाती हैं। तालिबानी दरअसल पाकिस्तानी नर्सरी की ही उपज है, जिन्हें पहले तो दूसरों के लिए प्रशिक्षित किया गया था किन्तु अब अनबन हो जाने पर यह लोग पाकिस्तान के ही दुश्मन बन बैठे हैं। एक मृत छात्र के पिता का कहना है कि जिस बच्चे को तैयार करने में 20 बरस लगते हैं उन्हें इन लोगों को मारने में 20 मिनट भी नहीं लगे। इन आतंकवादियों की बर्बरता की कहानी बयान होती है। दुनिया के सभी राष्ट्राध्यक्षों से इस कृत्य की निंदा की है, हमारे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने तो बाकायदा फोन करके पाक प्रधानमंत्री को अपने और देशवासियों की तरफ से संवेदना प्रकट की है। वैसे अब पाकिस्तानी आकाओं को इस आतंकवाद रूपी भस्मासुर को नष्ट करने के लिए सच्चे मन और सम्पूर्ण ताकत से कार्यवाही करनी पड़ेगी। तभी मारे गये इन निरीह बच्चों को सच्ची श्रद्धांजलि मिलेगी।
अनिरुद्ध कुमार सिंह,कीडगंज, इलाहाबाद
नहीं है एक अदद पार्क
हाईटेक युग में शहरीकरण तेजी से बढ़ रहा है। ऐसे में सुबह की सैर करने वालों और बच्चों के खेलने के लिए पार्क नहीं बचे हैं। जो हैं भी उनका भी अस्तित्व खत्म होता जा रहा है। चहुंओर सरकारी इमारतें नजर आ रही हैं। इसके बावजूद बच्चों को एक अदद पार्क का न होना लोगों को खल रहा है। बच्चे दिन भर होमवर्क व क्लास वर्क में व्यस्त रहते हैं। कोई ऐसी जगह नहीं है जहां वह फुर्सत के क्षण बिताने के लिए बच्चों की टोली के साथ बैठ सकें। विकास के दावे तो किए जा रहे हैं लेकिन पार्क की ओर किसी का ध्यान नहीं जा रहा है। पार्क बनने से जहां पर्यावरण सुरक्षित रहेगा वहीं सौंदर्य भी बढ़ेगा तथा बच्चों को मन बहलाने के लिए एक जगह मिल जाएगी। पार्कों में स्तंभ गाड़कर उनमें महापुरुषों का जीवन वृत्त लिखा जा सकता है। इनसे लोग प्रेरणा भी ले सकते हैं।
सूरज जायसवाल, कोर्रों मंझनपुर
खूनी खेल का कारण सिर्फ आक्रोश
मानवता का समाज में लगातार हास होता जा रहा है। हर कोई लालच से लेकर अपने विचारों के माध्यम से एक-दूसरे को नीचा दिखाने के लिए खूनी खेल खेलता जा रहा है। इस खूनी खेल को देखकर दूसरा परिवार भी इसकी ओर अग्रसर होता जा रहा है, जबकि इसका कारण सिर्फ आक्रोश है। आक्रोश को शांत करने के लिए लोग खूनी खेल का सहारा लेते हैं। जागरुकता की कमी के चलते इसमें लगातार इजाफा होता जा रहा है। हर वर्ष खूनी खेल की संख्या में बढ़ोत्तरी होती जा रही है। वह किसी भी धर्म जाति वर्ग का क्यों न हो। सब में खूनी खेल खेलने की उत्कंठा बनी रहती है। इसके लिए कोई सुधारात्मक व्यवस्था नहीं बन सकी है। जिससे कि लोगों के आक्रोश को शांत किया जा सके।
दीपक शुक्ल, बरइन का पूरा मंझनपुर
पुलिस का लचीलापन
एक बार फिर सूबे की पुलिस लापरवाह साबित हुई है। कुख्यात बदमाश भूरा का हिरासत से भाग जाना इस बात का प्रमाण है कि पुलिस विभाग में अभी भी दागियों का प्रभाव है। जब बदमाश भाग जाता है तब जांच और कार्रवाई की परंपरा निभाई जाती है। अगर पहले से ही चाकचौबंद व्यवस्था रहे तो यह सब न हो। सरकार को पहले कुछ समझ में नहीं आता। जब घटना हो जाती है तो वह इनाम घोषित करती है और बदमाश की तलाश में लाखों रुपया फूंकती है। सवाल यह है कि कब तक जनता का पैसा ऐसे कामों में बहाया जाता रहेगा। कभी तो इसे सुधारना होगा।
एचपी सिंह, मोहनगंज, प्रतापगढ़
अब क्या है जवाब
आतंकवाद का समर्थन पाकिस्तान को बहुत भारी पड़ रहा है। जब भी भारत हमला हुआ, उसने कोई सहयोग नहीं किया। आतंक विरोधी अभियान में वह हमेशा भारत के खिलाफ रहा है। बड़े-बड़े आतंकवादियों को भारत को सौंपने से इंकार करता रहा। दाऊद इब्राहिम को उसने शरण दी है। अब जब एक बड़ा हमला पाक पर हुआ है तो उसे कोई जवाब नहीं सूझ रहा है। बार-बार वह तालिबान को कुचलने की बात कह रहा है। ऐसे में पहले उसे यह बताना चाहिए कि अब तक उसने आतंकवाद को क्यों पाला। काश उसने पहले ही चेत लिया होता तो आतंकवाद आज इस कदर हावी न होता।
यज्ञ नारायण शुक्ल, देऊम पश्चिम, प्रतापगढ़