अर्हता तिथि के सवाल पर भरते हैं 'आह'
जागरण संवाददाता, इलाहाबाद : इलाहाबाद विश्वविद्यालय का ओहदा तो बढ़ गया, लेकिन यहां बड़ी संख्या में कार
जागरण संवाददाता, इलाहाबाद : इलाहाबाद विश्वविद्यालय का ओहदा तो बढ़ गया, लेकिन यहां बड़ी संख्या में कार्यरत शिक्षकों की हालत बेहतर होने के बजाए निरंतर बिगड़ रही है। इसीलिए शिक्षक अर्हता तिथि की बात होते ही 'आह' भरते हैं, क्योंकि डेढ़ दशक से यह तय नहीं हुआ है कि आखिर उन्हें वरिष्ठता का लाभ किस तिथि से दिया जाए। इस समय प्रशासन एवं वित्त विभाग के अफसर आए दिन बैठकें कर रहे हैं, लेकिन नतीजा नहीं निकल रहा है।
इलाहाबाद विश्वविद्यालय के संघटक कालेजों के 110 शिक्षकों के प्रमोशन का प्रकरण अभी निस्तारित नहीं हो पाया है इसी बीच विश्वविद्यालय के शिक्षकों ने अपना कच्चा चिट्ठा उजागर किया है। ¨हदी के विभागाध्यक्ष प्रो. मुश्ताक अली ने बताया कि वह 1996 में रीडर बने थे। उन्हें 2004 में प्रोफेसर हो जाना चाहिए, लेकिन इसके लिए पांच साल तक इंतजार करना पड़ा व 2009 में उनका साक्षात्कार हुआ। इसके बाद न तो अर्हता तिथि तय हो पाई है और न ही वेतन का निर्धारण हो पाया है, बल्कि प्रमोशन के बाद भी वही पैसा दिया जा रहा था। विरोध करने पर मूल वेतन में एक हजार रुपए बढ़ाए गए। यह हाल ¨हदी विभाग के लगभग सभी शिक्षकों का है। इसके अलावा विवि के सभी विभागों में इस तरह के शिक्षकों की भरमार है।
और तो और विश्वविद्यालय के पूर्व रजिस्ट्रार प्रो. जेएन मिश्र एवं मौजूदा रजिस्ट्रार प्रो. बीपी सिंह तक को अर्हता तिथि एवं वरिष्ठता का वास्तविक लाभ नहीं मिल पाया है। कहा जा रहा है कि लगभग छह दर्जन शिक्षक अनदेखी से परेशान हैं। यह तय न हो पाने से शिक्षक विदेश नहीं जा पा रहे हैं, क्योंकि उन्हें पुराने वेतन के अनुसार ही सुविधाएं दी जाती हैं। उधर, विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार प्रो. बीपी सिंह ने बताया कि इस संबंध में प्रशासन गंभीर है। लाभ न दे पाने का कारण काफी देर होना, पहले राज्य एवं बाद में केंद्रीय विश्वविद्यालय होना और समय-समय पर नियमों में बदलाव होना है। इस हालात में ऐसा फार्मूला ढूंढा जा रहा है जो सबको मान्य हो, पर अब तक रास्ता नहीं निकल पाया है।