मुहर का कमाल, झटपट सर्टिफिकेट तैयार
जासं, इलाहाबाद : संगम नगरी धर्म, आस्था, शिक्षा और साहित्य के लिए प्रसिद्ध है। लेकिन इन दिनों यहां का फर्जीवाड़ा भी लोगों की जुबान पर आने लगा है। जो युवा सालों पढ़ाई करने के बावजूद आइएएस-पीसीएस नहीं बन पा रहे वो विश्वविद्यालय मार्ग पर बनने वाली फर्जी मुहरों की सहायता से पलक झपकते प्रधानाचार्य से लेकर राष्ट्रपति के सचिव तक बन जाते हैं।
दरअसल विश्वविद्यालय मार्ग शहर का ऐसा स्थान है जहां खुलेआम मुहर बनाने का काम होता है। इन मुहरों का उपयोग सही काम के लिए कम, गलत काम के लिए अधिक किए जा रहे हैं। इन मुहरोंसे कुछ लोग शहर को फर्जीवाड़े का हब बनने में लगे हैं। मुहर विक्रेता रोज सैकड़ों अभ्यर्थियों के नौकरी के आवेदन पत्रों को भी पांच से दस रुपए लेकर विभिन्न अधिकारियों का हस्ताक्षर कर सत्यापित करते हैं। इनका सबसे अधिक प्रयोग फर्जी नियुक्ति पत्र, डिग्रियों, मार्कशीट आदि कई तरह के सर्टिफिकेट बनाने में किया जा रहा है। हैरतअंगेज तो यह है कि फर्जीवाड़े के नए-नए कारनामों केबावजूद पुलिस के ठीक नाक के नीचे हो रहे इस धंधे पर किसी का ध्यान नहीं जा रहा।
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सत्यापन में 143 डिग्री और मार्कशीट मिली फर्जी
जून 2013 से जुलाई 2014 तक इलाहाबाद विश्वविद्यालय में सत्यापन के लिए आए मार्कशीट और डिग्रियों में से 143 फर्जी मिले। इसके अलावा कुछ दिनों पहले ही नौकरी के नाम पर एक युवक से पांच लाख रुपये लेकर उसे फर्जी नियुक्ति पत्र जारी कर दिया गया था। फर्जी दस्तावेजों में सबसे अधिक प्रयोग इन्हीं मुहरों का है।
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और बन गई जिला मजिस्ट्रेट की मुहर
फर्जी मुहरों की हकीकत जानने के लिए संवाददाता विश्वविद्यालय मार्ग पहुंचा तो दुकानदार ने मुहरों की खुली रेट बताई। रबर की मुहर बनाने के लिए 25 से 30 रुपये और कम्प्यूटर की मुहर बनाने के लिए दुकानदार ने 50 रुपये की मांग की। संवाददाता ने तुरन्त जिला मजिस्ट्रेट की मुहर बनाने को कहा तो देखते ही देखते दुकानदार ने जिला मजिस्ट्रेट की मुहर बना दी।
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क्या है नियम
सरकारी मुहर बनाने के लिए संबंधित विभाग के अधिकारी के आदेश का होना आवश्यक है। बिना अधिकारी के आदेश के सरकारी विभाग की मुहर बनाना अपराध की श्रेणी में आता है।