प्रत्याशियों में नहीं होती थी आपसी कटुता
-छात्रसंघ चुनाव-वो क्या दिन थे-
इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्रसंघ चुनाव की तिथियों के एलान की अब औपचारिकता भर ही शेष है। विश्वविद्यालय प्रशासन और छात्रनेता अपने-अपने मोर्चे पर तैयारियों को अंतिम रूप देने में जुटे हैं। चुनाव का ट्रेंड भी बदला है। नामांकन, चुनाव प्रचार व अन्य चीजें अब नए रूप में सामने आ रही हैं। चुनाव प्रचार के लिए छात्र नेताओं द्वारा नित नए तरीके ईजाद करने के कारण ही लिंगदोह समिति ने चुनाव की गाइड लाइन जारी की है लेकिन उसकी सिफारिशों की अवहेलना की जा रही है। पूरब का ऑक्सफोर्ड कहे जाने वाले इविवि में छात्रसंघ चुनाव की परंपरा काफी पुरानी है। पूर्व के चुनावों में ऐसा क्या था जो वर्तमान दौर के चुनाव में कहीं दिखता नहीं है। मौजूदा दौर के छात्रनेता अपने वरिष्ठों से कुछ सीख ले सकें इसी को ध्यान में रख 'दैनिक जागरण' छात्रसंघ के पूर्व पदाधिकारियों से बातचीत की एक श्रृंखला शुरू कर रहा है। पेश है पहली कड़ी जिसमें इविवि छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष विनोदचंद्र दुबे ने चुनाव के बाबत अपने अनुभव साझा किए।
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भाषण तय करते थे छात्रसंघ का अध्यक्ष
जागरण संवाददाता, इलाहाबाद : इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्रसंघ चुनाव राजनीतिक चेतना के आधार पर लड़े जाते थे। दलों से समर्थित युवा सिद्धांतों को लेकर मैदान में उतरते थे और उनके बीच आपस में कहीं कोई कटुता नहीं होती थी। यह बात 1967 में इविवि के छात्रसंघ अध्यक्ष चुने गए विनोद चंद्र दुबे ने कही।
पूर्व अध्यक्ष ने कहा कि चुनाव में भाषण पर खासा जोर होता था। साथ ही जनसंपर्क एवं नीतियां पूरे चुनाव पर हावी होती थीं। जिसने वर्षो छात्र हित के लिए संघर्ष किया है वही यूनियन भवन में पहुंचेंगे, यह बात आम छात्रों को पता होती थी। ऐसे जुझारू युवा दो-तीन साथियों के साथ में यूनियन भवन पर जाते थे और वहां से हाथ जोड़कर चलते थे। उनके पीछे-पीछे आम छात्र भी कुछ दूर जाते थे और फिर उनका भाषण शुरू हो जाता था। तीन-तीन घंटे तक वह भाषण देते थे। आम छात्र उसे सुनकर प्रभावित होते थे। वहां से छात्रनेता विज्ञान विभाग में जाते थे और वहां भी भाषण देते थे।
श्री दुबे ने बताया कि पहले यूनियन भवन में प्रत्याशियों का दक्षता भाषण होता था। उसे सुनने के लिए सभी पार्टियों के बड़े नेता, हजारों छात्र और बाहरी लोग तक आते थे। इसके बाद हर हॉस्टल में जाकर छात्रनेता लॉन में खड़े होकर भाषण देते थे और छात्र बरामदों में खड़े होकर सुनते थे। यही नहीं चुनाव पूर्व भाषण के बाद ही छात्र नेता दो इंच चौड़ा और तीन इंच लंबा पंपलेट बंटवाना शुरू करते थे, क्योंकि भाषण से यह तय हो जाता था कि यह अध्यक्ष पद पर चुनाव लड़ने के योग्य हैं। उसके पहले अपने नाम का पंपलेट कोई भी बांट नहीं सकता था। पोस्टर, वॉल पेटिंग, वाल राइटिंग आदि नहीं होती थी। दुबे ने कहा कि मतदान के एक दिन पहले मशाल जुलूस निकला जाता था छात्रनेता अपने कुछ साथियों के संग प्रत्येक हॉस्टल में जाते थे और फिर वहां भाषण होता था जो उनकी हार अथवा जीत का आधार बनता था।