आदिवासियों की जीवनशैली से रूबरू होगा प्रयाग
जासं, इलाहाबाद : फ्रांस के एफिल टॉवर, अफ्रीका और पूर्वोत्तर भारत के आदिवासी गांव, वहा के निवासियों के रहन-सहन, सतरंगी लाइटिंग व्यवस्था, प्रकृति और संस्कृतियों का सम्मिश्रण। ऐसा अद्भुत नजारा देखने के लिए न तो आपको उपरोक्त जगहों पर जाने की आवश्यकता है ना ही जेब ढीली होने की चिंता करनी है। अशोक नगर दुर्गा पूजा कमेटी की ओर से अबकी नवरात्र में बनवाए जा रहे पंडाल में यह सब आप देख और महसूस कर सकते हैं।
उपरोक्त जगहों की प्रतिमूर्ति बनाने के लिए पं.बंगाल व असम से लगभग 25 कलाकार दिन-रात एक किए हैं। विश्व भारती कालेज ऑफ आर्ट्स कोलकाता के छात्र रहे जयंतो घोष इस पंडाल व प्रतिमूर्तियों के मुख्य निर्माता हैं। पंडाल की विशेषताओं पर प्रकाश डालते हुए बताया कि इसको तैयार करने के लिए लगभग छह बड़े ट्रकों में पं. बंगाल व असम से सामग्रियां लायी गई हैं। इनमें होगला पत्ता, तोलता बांस, नारियल के छाल और विविध प्रकार के सामान हैं। पंडाल के पर्यवेक्षक और कोलकाता निवासी गौतम सरकार ने बताया कि 60 फीट ऊंचाई और 80 फिट की चौड़ाई वाले पूजा पंडाल में अफ्रीकी और भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में रहने वाले आदिवासियों की जीवन शैली को हम दर्शाने का पूरा प्रयास कर रहे हैं। मछली का शिकार करते आदिवासी, पालने में बच्चे को झुलाती महिला, आदिवासी नृत्य करता समूह, इसमें मुख्य हैं। गौतम ने यह भी बताया कि आदिवासियों में व्याप्त अंधविश्वास को भी हम अपनी कला के माध्यम से दिखाने का प्रयास कर रहे हैं। हुगली निवासी कलाकार तपस ने बताया कि दुर्गा पूजा पंडाल के तोरण द्वार को फ्रांस के मशहूर 'एफिल टॉवर' की तर्ज पर बनाया जा रहा है। 54 फीट ऊंचे तोरणद्वार में जो लाइटिंग व्यवस्था की जा रही है वह अभूतपूर्व होगी। स्थानीय निवासियों ने शायद ही कभी ऐसा देखा होगा। प्रयाग में आदिवासी गांवों व संस्कृति को दर्शाने वाले इस पंडाल के निर्माण की कुल लागत लगभग 35 लाख रुपये आंकी गई है।